चीर चट्टान के सीने को मिला करते थे
तब मुहब्बत में सनम लोग वफ़ा करते थे
काट देता था ज़माना भले ही पर नाजुक
होंसलों से नई परवाज़ भरा करते थे
दिल के ज़ज्बात कबूतर के परों पर लिखकर
प्यार का अपने वो इजहार किया करते थे
कैस फ़रहाद या राँझा कई दीवाने तब
नाम माशूक का तो खूँ से लिखा करते थे
एक हम थे जो जमाने की नजर से डरकर
जल्द खुर्शीद के ढलने की दुआ करते थे
आज वो रह गए केवल मेरा सपना बनकर
चाँदनी रात में हम जिनसे मिला करते थे
------------मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
वाह !!!! क्या सुंदर गजल हुई है ये । चीर चट्टान के सीने को मिला करते थे तब मुहब्बत में सनम लोग वफ़ा करते थे......... बहुत खूब कहा है आपने ..... वो लोग जाने कैसे हुआ करते थे ! बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी
मिथिलेश भैया ,सबसे पहले मैं अपनी भूल सुधारती हूँ .इसकी बह्र है ----२१२२ ११२२ ११२२ २२
हर अशआर पर आपकी दाद मेरी कलम में नव ऊर्जा भरती हुई प्रतीत हुई लिखना सार्थक हो गया आपका दिल से बहुत -बहुत- बहुत शुक्रिया |
हर्ष महाजन जी ,आपको ग़ज़ल उसके भाव प्रभावित कर सके मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से शुक्रिया ,आभार आपका |
आदरणीया राजेश दीदी,
बड़ी प्यारी और खूबसूरत ग़ज़ल हुई है, ग़ज़ल की सादगी और ताजगी दिल में उतर गई "तब और अब" की पृष्ठभूमि पर बहुत बढ़िया शेर निकाले है आपने. शेर दर शेर दाद हाज़िर है -
चीर चट्टान के सीने को मिला करते थे
तब मुहब्बत में सनम लोग वफ़ा करते थे ............. बहुत खूबसूरत मतला
काट देता था ज़माना भले ही पर नाजुक
होंसलों से नई परवाज़ भरा करते थे........ बहुत बेहतरीन
दिल के ज़ज्बात कबूतर के परों पर लिखकर
प्यार का अपने वो इजहार किया करते थे.......... वाह वाह
कैस फ़रहाद या राँझा कई दीवाने तब
नाम माशूक का तो खूँ से लिखा करते थे......... बढ़िया
एक हम थे जो जमाने की नजर से डरकर
जल्द खुर्शीद के ढलने की दुआ करते थे ........... वाह वाह दीदी कमाल का शेर हुआ है. क्या कहन है... हासिल-ए-ग़ज़ल
आज वो रह गए केवल मेरा सपना बनकर
चाँदनी रात में हम जिनसे मिला करते थे ............. बहुत सुन्दर शेर
इस शानदार ग़ज़ल पर दिल दे दाद हाज़िर है.
लेकिन दीदी एक बात और बह्र या वज्न आप भूल गई लिखना .....
आदरणीय rajesh kumari जी ग़ज़ल में वज़न इतना की दिल में ठहर गई | वाह...अहसासों को बड़े ही सलीके से सजाकर पेश किया .आपने ...हर शेर पर दाद वसूल पाइयेगा ....मगर ये शेर तो बस.....
." दिल के ज़ज्बात कबूतर के परों पर लिखकर
प्यार का अपने वो इजहार किया करते थे".....वाह क्या बात है ! एक दम सच .. इस बंद ने सोच को कितने दूर तक सोचने को मजबूर कर दिया | ...ढेरों दाद !! वसूल पाइयेगा !! साभार !!
आ० डॉ० गोपाल नारायण भाई जी,ग़ज़ल पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया का तहे दिल से स्वागत व् आभार है |
आ० दीदी
क्या खूबसूरत गजल कही आप् ने . एक-एक शेर मोती जैसा और फिर वह पुराना दर्द -
आज वो रह गए केवल मेरा सपना बनकर
चाँदनी रात में हम जिनसे मिला करते थे
आ० योगराज जी ,ग़ज़ल को फीचर करने के लिए आपकी नवाजिशों का तहे दिल से शुक्रिया |
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