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आदरणीय पंकज भाई , गज़ल के प्रयास के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ । मुझ्हे लगता है अभी यहाँ उपलब्ध पाठों का अभी और अध्ययन करना चाहिये , बहर भी अपने हिसाब से लेने के बजाये जो बहर मान्य हैं उन पर गज़ल कहने का प्रयास करें तो अच्छा होगा ।
आदरणीय पंकज जी नये प्रयोग के लिये बधाई स्वीकार करें
तुम्हें प्रेम पाश में, गिरफ्तार करेंगे।
हम भी दबंग हैं, दमदार जहाँ के।। बह्र के मुताबिक इस शेर को फिर से देख सकते है तो हमें भी आसानी हो जाएगी ।
मुजरिम हो मगर तुम, कुछ और तरह के। अरदास करेंगे,हम दिल में बसा के....... वाह !!!!! बडी़ सिपहियाना स्टाईल में ये गजल हुई है आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा जी ..... बधाई स्वीकार करें ।
पंकज जी
आपकी प्रयोगधर्मिता आश्वस्त करती है .
आदरणीय पंकज जी, मतले में काफिया 'आ' और रदीफ़ 'के' बनाने के बाद आप उसे बिलकुल भूल गए. प्रयोग पर पुनर्विचार निवेदित है.
मतला यूं किया जा सकता है -
मुस्कान दिखा के, बे-हाल बनाये
होंठों की लकीरों, का जाल बिछा के
बहरहाल बढ़िया प्रयोग हुआ है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई ...सादर
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