"यहाँ आम ,यहाँ अमरुद और वहां पर पपाया के पेड़ लगायेंगे ,ठीक मम्मा ? पेड़ लगाने के लिए उसके दस साल के बेटे का उत्साह फूटा पड़ रहा था I
एक महीने पहले ही वो लोग अपने इस नए बने घर में आये थे Iबगीचे वाले घर का उसका बचपन का सपना अब आकार ले रहा थाI क्यारियाँ तैयार थीं ,बस पौधे रोपने थे I
"मम्मा ,अपना बगीचा भी बुआ दादी के बगीचे जैसा बन जायेगा ना एक दिन ?खूब सारे बड़े बड़े पेड़ और ...."I
बेटे की चेहरे की चमक ने एकदम उसके दिमाग का फ़ास्ट फॉरवर्ड का बटन दबा दिया ...Iबेटा बहु ,पोते पोती पेड़ों की छाया में हँसते खेलते ...बीस साल बाद का नज़ारा .देख लिया उसने एक पल में ..I
"लो ,बुआ का फोन "पति पीछे खड़े थे I
" बुआ हम अभी पौधे ही रोपने जा रहे थे ,और आपको याद भी कर रहे थे "उमंग में बही जा रही थी वो I
"बेटा, मै मुंबई जा रही हूँ बंटी के साथ Iयहाँ का मकान बेच दिया है ,कई महीनों से बंटी पीछे पड़ा था ...Iमुंबई में इसे फ्लैट लेना है ...हाँ बेटा सुन .नीम का पेड़ ज़रूर लगाना ...I
बुआ की आवाज़ का गीला पन उसने फोन में भी महसूस कर लिया I
"मम्मा ,चलो ना ..कब लगायेंगे पेड़ ?" बेटा हाथ खींच रहा था I
अचानक दिमाग का फ़ास्ट फॉरवर्ड बटन फिर से दबने को तत्पर हो गया ,पर अब की बार ....जोर से झटक दिया उसने सर को ..I नहीं ..नहीं सोचना है कुछ भी ...I
"चल बेटा ,लगाते हैं पेड़ "I
मौलिक व् अप्रकाशित
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"बेटे की चेहरे की चमक ने एकदम उसके दिमाग का फ़ास्ट फॉरवर्ड का बटन दबा दिया ...Iबेटा बहु ,पोते पोती पेड़ों की छाया में हँसते खेलते ...बीस साल बाद का नज़ारा .देख लिया उसने एक पल में " लघु कथा की जान है ये बेहतरीन पंक्तिया | हार्दिक बधाई
जिस घर को कितनी मेहनत और लगन से सँवारते हैं भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं वाही जब छोड़ना पड़ता है तो दिल रो उठता है हम तो सरकारी आवास को ही बदलते दुखी होते हैं फिर उनकी सोचो जो बरसों से अपने घर में रहते हैं वो अचानक छोड़ना पड़े तो कितना दुःख होता होगा |बहुत अच्छी लघु कथा लिखी है भैया मिथिलेश जी की सलाह स्वागत योग्य है |
आदरणीया प्रतिभा जी , अच्छी लगी आपकी लघुकथा । आपको हार्दिक बधाई ।
आदरणीय मिथिलेश जी ,आपके मार्ग दर्शन अनुसार सुधार कर लिया है ,भविष्य में भी इसका ध्यान रखूंगी . मार्ग दर्शन और सराहना के लिए आपकी ह्रदय से आभारी हूँ
आदरणीया प्रतिभा जी, एक बेहतरीन कथानक के ताने बाने में बुनी हुई शानदार लघुकथा हुई है. लघुकथा का सकारात्मक अंत इसे मेरे लिए विशिष्ट बनाता है. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. आपकी रचनाओं का कायल रहा हूँ इसलिए रचना के प्रस्तुतीकरण विषयक निवेदन है कि वर्तनी, कॉमा आदि की छोटी छोटी त्रुटियाँ रचना के प्रभाव को कम करती है. इसलिए इन त्रुटियों को सुधारने के बाद ही रचना पोस्ट हो तो प्रस्तुति का प्रभाव दुगुना हो जाता है. मुझे जहाँ वर्तनी, कॉमा या विराम चिन्ह बाबत त्रुटी लगी उसे सुधारने का प्रयास किया है. आप एक बार अवश्य देख लीजियेगा.
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"यहाँ आम ,यहाँ अमरुद और वहां पर पपाया के पेड़ लगायेंगे ,ठीक मम्मा?" पेड़ लगाने के लिए उसके दस साल के बेटे का उत्साह फूटा पड़ रहा था I एक महीने पहले ही वो लोग अपने इस नए बने घर में आये थे I बगीचे वाले घर का उसका बचपन का सपना अब आकार ले रहा था I क्यारियाँ भी तैयार थीं, बस पौधे रोपने थे I
"मम्मा, अपना बगीचा भी बुआ दादी के बगीचे जैसा बन जायेगा ना एक दिन ? खूब सारे बड़े बड़े पेड़ और ...." बेटे की चेहरे की चमक ने एकदम उसके दिमाग का फ़ास्ट फॉरवर्ड का बटन दबा दिया ...बेटा-बहू, पोते-पोती पेड़ों की छाया में हँसते-खेलते ...बीस साल बाद का नज़ारा, देख लिया उसने एक पल में ..I
"लो, बुआ का फोन "पति पीछे खड़े थे I
" बुआ हम अभी पौधे ही रोपने जा रहे थे और आपको याद भी कर रहे थे I " उमंग में बही जा रही थी वो I
"बेटा, मै मुंबई जा रही हूँ बंटी के साथ I यहाँ का मकान बेच दिया है I कई महीनों से बंटी पीछे पड़ा था ...मुंबई में इसे फ्लैट लेना है ...हाँ बेटा सुन, नीम का पेड़ ज़रूर लगाना ..I" बुआ की आवाज़ का गीलापन उसने फोन पर भी महसूस कर लिया I
"मम्मा, चलो ना ..कब लगायेंगे पेड़ ?" बेटा हाथ खींच रहा था I
अचानक दिमाग का फ़ास्ट फॉरवर्ड बटन फिर से दबने को तत्पर हो गया, लेकिन अब की बार नहीं....जोर से झटक दिया उसने सिर को I
"चल बेटा, लगाते हैं पेड़ I "
कथा का मर्म समझने और सकारात्मक अंत का अनुमोदन करने के लिए आपका आभार आ० कांता जी
आपकी तरह पहले मैंने भी इसको वहीँ समाप्त करने का विचार किया था ,पर बाद में एक सकारात्मक अंत का विचार आया, सार्थक टिपण्णी के लिए आपका आभार आ० डॉ गोपाल नारायण जी
कथा मूल रूप में वहीं समाप्त होते है जब बुआ फोन पर घर बेचने की सूचना देती हैं शिल्प की कसावट इसे और बेहतर बना सकती थी . कथानक अच्छा लिया गया है .
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