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कुहुकती है कोयलिया अमराइयों में
महकते कई फूल पुरवाइयों में
दिखाई न दी आज दीवार उनकी
अजी, क्या सुलह हो गई भाइयों में ?
ग़मों के भँवर में जो खोया था बचपन
मिला आज यादों की परछाइयों में
पिघलते हों पत्थर धुनें जिनकी सुनकर
फुसूँ हमने देखा वो शहनाइयों में
उजाले में दिन के छुपे रहते बुजदिल
उमड़ते वही अब्र तन्हाइयों में
न कद से समंदर की औकात परखो
छुपा है खजाना तो गहराइयों में
वफ़ा आज जाने कहाँ को गई है
न है बांकपन में न रानाइयों में
पिता माँ बहन नाज करते थे जिसपर
मिला आज बेटा वो बलवाइयों में
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
मिथिलेश भैया ,ग़ज़ल पर शेर दर शेर आपकी दाद पाकर उत्साह से में आप्लावित हो उठा तथा आश्वस्त भी हुआ की अशआर अपनी बात स्पष्ट रख रहे हैं पाठक के भाव साथ जुड़ रहे हैं तहे दिल से बहुत -बहुत शुक्रिया |
हम जैसों के समझ में आ जाने वाली ग़ज़ल , सबसे ज्यादा अंतिम पंक्तियाँ करती हैं भावुक 'मिला आज वो बेटा बलवाइयों में 'बहुत बधाई आपको आदरणीया राजेश कुमारी जी
न कद से समंदर की औकात परखो
छुपा है खजाना तो गहराइयों में …………… गज़ब के अहसास पिरोये हैं आदरणीया राजेश कुमारी जी आपने इस ग़ज़ल में। खुद ब खुद हर शे'र पे जुबां दाद देने को मज़बूर है .... इस दिली दाद को कबूल फरमाएं आदरणीया।
आदरणीया राजेश दीदी, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है-
कुहुकती है कोयलिया अमराइयों में
महकते कई फूल पुरवाइयों में ............. बढ़िया मतला
दिखाई न दी आज दीवार उनकी
अजी, क्या सुलह हो गई भाइयों में ?.......... वाह वाह क्या खूब कहा है ....
ग़मों के भँवर में जो खोया था बचपन
मिला आज यादों की परछाइयों में................. बहुत मासूम सा शेर हुआ है
पिघलते हों पत्थर धुनें जिनकी सुनकर
फुसूँ हमने देखा वो शहनाइयों में................... बढ़िया शेर
उजाले में दिन के छुपे रहते बुजदिल
उमड़ते वही अब्र तन्हाइयों में............. बहुत शानदार शेर हुआ है .... महसूस किया जाने वाला शेर
न कद से समंदर की औकात परखो
छुपा है खजाना तो गहराइयों में............. बड़ा शेर दीदी .शानदार ...लाजवाब ... हासिल-ए-ग़ज़ल
वफ़ा आज जाने कहाँ को गई है
न है बांकपन में न रानाइयों में.......... अच्छा शेर
पिता माँ बहन नाज करते थे जिसपर
मिला आज बेटा वो बलवाइयों में............ बहुत बढ़िया शेर
इस ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं दीदी....
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