For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मिला आज बेटा वो बलवाइयों में (फिलबदीह ग़ज़ल 'राज')

122   122  122    122

कुहुकती है कोयलिया अमराइयों में

महकते  कई  फूल पुरवाइयों में  

 

दिखाई  न  दी आज दीवार उनकी

अजी, क्या सुलह हो गई भाइयों में ?

 

ग़मों के  भँवर में जो खोया था बचपन

मिला आज यादों की परछाइयों में

 

पिघलते हों पत्थर धुनें जिनकी सुनकर

फुसूँ हमने देखा वो शहनाइयों में

 

उजाले  में दिन के छुपे रहते बुजदिल

उमड़ते वही अब्र तन्हाइयों में

 

न कद से समंदर की औकात परखो

छुपा है खजाना तो गहराइयों में

 

वफ़ा आज जाने कहाँ को गई है

न है बांकपन में न रानाइयों में

 

पिता माँ बहन नाज करते थे जिसपर

मिला आज बेटा वो बलवाइयों में

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

Views: 1040

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 1, 2015 at 10:33am

मिथिलेश भैया ,ग़ज़ल पर शेर दर शेर आपकी दाद  पाकर उत्साह से में आप्लावित हो उठा तथा आश्वस्त भी हुआ की अशआर अपनी बात स्पष्ट रख रहे हैं पाठक के भाव साथ जुड़ रहे हैं तहे दिल से बहुत -बहुत शुक्रिया |

Comment by pratibha pande on September 1, 2015 at 9:35am

हम  जैसों के समझ में आ जाने वाली ग़ज़ल , सबसे ज्यादा अंतिम पंक्तियाँ करती हैं भावुक 'मिला आज वो बेटा बलवाइयों में  'बहुत बधाई आपको आदरणीया  राजेश कुमारी जी    

Comment by Samar kabeer on August 31, 2015 at 11:38pm
बहना राजेश कुमारी जी,आदाब,वाह वाह वाह,ग़ज़ल और वो भी फ़िल बदीह,कमाल कर दिया ,क्या शानदार ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं,मतले के ऊला मिसरे पर कुछ शंका है ,ज़रा देखिये तो :-

"कुहुकती है कोयलिया अमराइयों में"

:- कुहुकती कोयलिया है अमराइयों में"
Comment by Sushil Sarna on August 31, 2015 at 7:18pm

न कद से समंदर की औकात परखो
छुपा है खजाना तो गहराइयों में …………… गज़ब के अहसास पिरोये हैं आदरणीया राजेश कुमारी जी आपने इस ग़ज़ल में। खुद ब खुद हर शे'र पे जुबां दाद देने को मज़बूर है .... इस दिली दाद को कबूल फरमाएं आदरणीया।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 31, 2015 at 2:14pm

आदरणीया राजेश दीदी, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है-

कुहुकती है कोयलिया अमराइयों में

महकते  कई  फूल पुरवाइयों में  ............. बढ़िया मतला 

 

दिखाई  न  दी आज दीवार उनकी

अजी, क्या सुलह हो गई भाइयों में ?.......... वाह वाह क्या खूब कहा है ....

 

ग़मों के  भँवर में जो खोया था बचपन

मिला आज यादों की परछाइयों में................. बहुत मासूम सा शेर हुआ है 

 

पिघलते हों पत्थर धुनें जिनकी सुनकर

फुसूँ हमने देखा वो शहनाइयों में................... बढ़िया शेर 

 

उजाले  में दिन के छुपे रहते बुजदिल

उमड़ते वही अब्र तन्हाइयों में............. बहुत शानदार शेर हुआ है .... महसूस किया जाने वाला शेर 

 

न कद से समंदर की औकात परखो

छुपा है खजाना तो गहराइयों में............. बड़ा शेर दीदी .शानदार ...लाजवाब ... हासिल-ए-ग़ज़ल 

 

वफ़ा आज जाने कहाँ को गई है

न है बांकपन में न रानाइयों में.......... अच्छा शेर 

 

पिता माँ बहन नाज करते थे जिसपर

मिला आज बेटा वो बलवाइयों में............ बहुत बढ़िया शेर 

इस ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं दीदी....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
9 hours ago
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service