टूटे सपने … (लघुकथा)
"राधिका ! आओ बेटी , अविनाश जाने की जल्दी कर रहा है। " माँ ने राधिका को आवाज़ लगाते हुई कहा।
''अभी आयी माँ, बस दो मिनट में आती हूँ। '' राधिका ने आईने के सामने बैठे बैठे ही जवाब दिया। आज अविनाश कितने समय के बाद विदेश से आया है। आज मैं उसे अपने मन की बात कह ही डालूंगी ,राधिका मन ही मन बुदबुदाई। जल्दी से आँखों में काजल की धार बना वो ड्राईंग रूम में आई।
''हाय अविनाश कैसे हो ? विदेश में कभी हमारी याद भी आती थी या गोरी मेमों में ग़ुम रहते थे। ''
''अरे नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं। भला तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ। तुम्हें तो सबसे ज्यादा मिस करता था। ''अविनाश ने कहा।
''अच्छा चलो छोडो ये गीले शिकवों की बातें। ये उम्र भर यूँ ही चलती रहेंगी। ये बताओं आज इतने खुश क्यों हो ,और ये किस बात की मिठाई लाये हों। ''राधिका ने शरारत भरे लहज़े में कहा।
''इतने दिनों बाद आया हूँ। हमेश की तरह सवाल पे सवाल किये जा रही हों। ये नहीं कि चाय-वाय पूछूँ। ''अविनाश राधिका की तरफ मुखातिफ़ होकर बोला।
''सॉरी, सॉरी ''राधिका कपों में चाय डालते हुए बोली। सब को चाय देकर खुद भी चाय की प्याली लेकर सोफे पर बैठ गयी।
''हाँ तो अब बताओ , क्या सरप्राइज है ?" राधिका ने चाय पीते पीते अविनाश से पूछा।
आंटी , ये मेरी शादी का कार्ड है। आप लोग जरूर आना। और हाँ राधिका, तुम पर दुल्हन को सजाने की जिम्मेदारी है। " अविनाश आंटी के हाथ में कार्ड देते हुए बोला। '' आंटी ! अब राधिका काफी समझदार और बड़ी हो गयी है। इसके लिए भी कोई अच्छा सा लड़का देखकर इसके हाथ पीले कर दो। '' अविनाश राधिका की तरफ देखकर हँसते हुए बोला।
''हाँ बेटा, कोई अच्छा लड़का मिलते ही मैं इसके भी हाथ पीले कर दूंगी। तुम्हारी नज़र में कोई लड़का हो तो ज़रूर बताना। '' राधिका की माँ ने अविनाश से कार्ड लेते हुए कहा।
चाय पीते पीते राधिका को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके कानों में गर्म गर्म पिघला हुआ सीसा डाल दिया हो।
राधिका के हाथ से प्याली छूट गयी और छनन छनन की आवाज़ के साथ फर्श पर उसके टुकड़े टूटे सपनों की तरह इधर उधर बिखर गए।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
अच्छी लघु कथा हुई है आ० सुशील सरना जी बधाई आपको |
आदरणीय सौरभ जी लघुकथा पर आपकी समीक्षात्मक प्रशंसा का हार्दिक आभार। आपकी द्वारा दी गयी हिदायतों का मैं भविष्य के सृजन में समावेश करने का प्रयत्न करूंगा। आपके मार्गदर्शन का हार्दिक हार्दिक आभार। कृपया स्नेह बनाये रखें सर।
आदरणीय मिथिलेश जी लघुकथा पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति से प्रयास को बल मिला। आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
लघुकथा का भावुक कथ्य रोचक है. लेकिन ऐसे कथ्य अब अचंभित कहाँ करते हैं ? सिनेमा, कहानियों या संस्मरणों में ऐसे प्रकरण इतनी बार दुहराये-तिहराये गये हैं कि किसी के जीवन में घटित भी हों तो अब दूसरों को संवेदित नहीं करते. बहरहाल, आपकी प्रस्तुति केलिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.
लघुकथा शिल्प और बेहतर होता यदि इसे तनिक और कसा जाता. यही लघुकथाओं की विशेषता है.
सादर
आदरणीया सुशील सरना सर, ये एक तरफा प्रेम वाली कथा लग रही है. ऐसे खुली आँखों से बुने सपने ऐसे ही चूर चूर होते है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
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