For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बिक रही अब तो मुहब्बत दोस्तों (ग़ज़ल)

(2122  2122  212)
बढ़ रही ख़्वाहिश-ए-दौलत दोस्तों..
बिक रही अब तो मुहब्बत दोस्तों..
-
कब रुकेंगी जाने नदियां ख़ून की,
ख़त्म होगी कब ये नफ़रत दोस्तों..
-
न्याय की उम्मीद अब तुम छोड़ दो,
हैं बहस भर ही अदालत दोस्तों..
-
दिल में उनके है नहीं मेरी जगह,
क्यों हमें उनकी है चाहत दोस्तों..
-
टूटने का डर नहीं लगता हमें,
दिल लगाने की है आदत दोस्तों..
-
कद्र करता है कलम की 'जय' तभी,
देती है उसको ये इज़्ज़त दोस्तों..
(मौलिक व अप्रकाशित)
~
~
जयनित कुमार वर्मा
अररिया,बिहार

Views: 654

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 16, 2015 at 12:59pm
आमोद जी दोनों अशआर बाबह्र हैं ध्यान से तक्ती करके देखिये
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 16, 2015 at 10:30am
दिल में उन/के है नही मे/री जगह
2122/2212/212
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 16, 2015 at 10:23am
कब रुकेगी जाने नदियां खून की


सर बहर से बाहर है
Comment by Rahul Dangi Panchal on September 16, 2015 at 9:43am
सुन्दर रचना

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 15, 2015 at 10:18pm
आपने यहाँ हर्फ़े इज़ाफ़त को स्वतंत्र रूप से लिया है जबकि यहाँ ये 'ख्वाहिशे' की तरह पढ़ा जायेगा जिसका वज्न २११ या छूट के अनुसार २१२ भी लिया जा सकता है
Comment by जयनित कुमार मेहता on September 15, 2015 at 8:35pm

आदरणीय, मैं नहीं समझ पा रहा हूँ कि मतले का पहला मिसरा कैसे बेबह्र है..?

कृपया देखें,

बढ़/र/ही/ख्वा/हिश/ए'/दौ/लत/दो/स्/तों

2/1/2/2/2/1/2/2/2/1/2


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 15, 2015 at 7:23pm
आदरणीय जयनितजी पहले तो ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकार करें। दूसरे, मतले का पहला मिसरा बेबह्र हुआ जा रहा है फिर से विचार करेंकरें
सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service