1212 1122 1212 22 तमाम उम्र जलूँ आफ़ताब हूँ मैं तो, पढ़ी न जाय कभी वो किताब हूँ मैं तो
न ढूँढिये मुझे केवल सराब हूँ मैं तो, किसी चमन का फ़सुर्दा गुलाब हूँ मैं तो .
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Comment
आ० समर कबीर भाई जी,ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति को मैं अपना सौभाग्य मानती हूँ आपकी शेर दर शेर दाद मेरे उत्साह में कितना ईजाफ़ा करती है शब्दों में बयाँ नहीं कर सकती|आपकी इस्स्लाह सर आँखों पर उर्दू शब्दों की जानकारी आपसे बेहतर किसे होगी हालांकि रुआब बहुत जगह पढ़ चुकीं हूँ किन्तु यह शब्द रौब का बिगड़ा हुआ रूप है यह तो ज्ञात हो गया है तो भविष्य में इससे बचना ही चाहूंगी |ग़ज़ल पर दाद और मार्गदर्शन का आपका बहुत- बहुत शुक्रिया.
आ० रवि शुक्ला जी,आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ उत्साहित हूँ आपने ग़ज़ल को इतना मान दिया दिल से आभार आपका.
आ० श्याम नारायण वर्मा जी ,आपका हृदय से आभार.
आ० डॉ ० कंवर करतार जी,आपका तहे दिल से शुक्रिया|
बेहतरीन आ० फिल बदीह के दायरे में इतनी बेहतरीन गजल कहना सच में कमाल है...नमन!
सारे शेर बेहतरीन हुए है...आ० समर सर की बात अपनी जगह ठीक है पर ..''रौब-रुबाब'' आदि इस तरह के मूल शब्द के साथ के पूरक शब्द अब इतने प्रचलित हो चुके है की केवल रुबाब का प्रयोग करने में मुझे कुछ दोष नज़र नही आता..!
एक शेर ये...
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मुझे बुला/ के भला ख़्वा/ब में क्या पा/ओगे...............क्या को १ मात्रा माना जा सकता है क्या??
मुसीबतों का सबब बेहिसाब हूँ मैं तो...............यहाँ ख़्वाब में बुलाना उतना जंच नही रहा है.....हकीकत की बात हो तो शेर और मारक हो जाये!सादर!
आदरणीया राजेश जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है पिछले मुशायरे से पहले ये बह्र बहुत मुश्किल समझ रहे थे पर अब तो इस पर ग़ज़ले पढ़ का बहुत अच्छा लग रहा है । लगातार जलते रहने वाली शय के रूप मे आफताब से बेहतर अौर क्या हो सकता है बहुत सुन्दर कथ्य है ग़ज़ल में आदरणीया । बधाई स्वीकार करें ।
इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए कोटि कोटि बधाई , |
वहन राजेश, सुंदर ग़ज़ल के लिए कोटि कोटि बधाई
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