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आदरणीय शहजाद जी ..इस मार्मिक लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
ज़िन्दगी के रास्ते ऐसी ज़ख़्मी सड़कों की तरह और रईसों के मिज़ाज इस मटमैले गंदे पानी जैसे ही तो हो गए हैं! घर वाले पैसे वाले भले हों, लेकिन सिर्फ तुम ही तो हो जो अम्मी-अब्बू जैसा प्यार लुटाते हो मुझ पर।
.... वाह अंतिम पंक्ति लघुकथा में निहित मार्मिकता को चरम स्थिति प्रदान करती है .... इस दिल द्रवित करने वाली लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
बहुत ही मार्मिक कथा बनी है आपकी आदरणीय शहज़ाद जी। बधाई स्वीकार करें
कितना अकेला हो जाता है इंसान यदि आँखें ही साथ छोड़ दे जो अपने पन से दो बात करे अपना थोडा सा वक़्त दे वही सच्चा हमदर्द है पैसा भी ऐसे हमदर्द पैदा नहीं कर सकता उसके अन्दर के अँधेरे को दूर नहीं कर सकता |कहानी दिल को छू गई बहुत मार्मिक ,आपको हार्दिक बधाई आ० Sheikh Shahzad Usmani जी
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