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बहुत बेकार सा चर्चा रहा हूँ
मैं सच हूँ, आँख का कचरा रहा हूँ
बहा हूँ मै सड़क पर बेवजह भी
लहू इंसाँ का हूँ , सस्ता रहा हूँ
जो समझा वो सदा नम ही रहा फिर
मै आँसू ! आँखों से बहता रहा हूँ
महज़ इक बूँद समझा तिश्नगी ने
भँवर के वास्ते तिनका रहा हूँ
जलादूँ एक तो बाती किसी की
इसी उम्मीद में दहका रहा हूँ
मुझे मानी न पूछें ज़िन्दगी का
अभी ख़ुद को ही मैं समझा रहा हूँ
किसी के वास्ते खुशियों का कारण
किसी की राह का काँटा रहा हूँ
बहे आँसू ने छू कर फिर जगाया
न जाने कब तलक सोता रहा हूँ
तेरी ही सोच ने मारा है मुझको
तेरी ही सोच में जीता रहा हूँ
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय डा. कँवर भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
गिरीराज जी , बहुत सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई I
बहा हूँ मै सड़क पर बेवजह भी
लहू इंसाँ का हूँ , सस्ता रहा हूँ------ बहुत ख़ूबI
आदरणीय राम अवध भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय विजय शंकर भाई . उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
आदरणीय नादि खान भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
अदरणीय गिरिराज जी बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, कामयाब गज़ल कही सभी अशआर उम्दा हुये है बहुत शुभकामनायें ।
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