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ग़ज़ल - लहू इंसाँ का हूँ , सस्ता रहा हूँ ( गिरिराज भंडारी )

1222    1222    122 

बहुत बेकार सा चर्चा रहा हूँ

मैं सच हूँ, आँख का कचरा रहा हूँ

 

बहा हूँ मै सड़क पर बेवजह भी

लहू इंसाँ का हूँ , सस्ता रहा हूँ

 

जो समझा वो सदा नम ही रहा फिर

मै आँसू ! आँखों से बहता रहा हूँ

 

महज़ इक बूँद समझा तिश्नगी ने

भँवर के वास्ते तिनका रहा हूँ

 

जलादूँ एक तो बाती किसी की   

इसी उम्मीद में दहका रहा हूँ   

 

मुझे मानी न पूछें ज़िन्दगी का

अभी ख़ुद को ही मैं समझा रहा हूँ

 

किसी के वास्ते खुशियों का कारण

किसी की राह का काँटा रहा हूँ

 

बहे आँसू ने छू कर फिर जगाया

न जाने कब तलक सोता रहा हूँ

 

तेरी ही सोच ने मारा है मुझको

तेरी ही सोच में जीता रहा हूँ

*********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 4, 2015 at 9:54pm

आदरणीय डा. कँवर भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।

Comment by कंवर करतार on October 4, 2015 at 9:28pm

गिरीराज जी , बहुत सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई  I

बहा हूँ मै सड़क पर बेवजह भी

लहू इंसाँ का हूँ , सस्ता रहा हूँ------ बहुत ख़ूबI


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 4, 2015 at 9:28pm

आदरणीय राम अवध भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 4, 2015 at 9:27pm

आदरणीय विजय शंकर भाई . उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 4, 2015 at 9:25pm

आदरणीय नादि खान भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 4, 2015 at 7:44pm
अच्छी गजल के लिये बधाई।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 4, 2015 at 7:13pm
वाह , बहुत सुन्दर प्रस्तुति , आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , बधाई , सादर।
Comment by नादिर ख़ान on October 4, 2015 at 7:05pm

अदरणीय गिरिराज जी बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, कामयाब गज़ल कही सभी अशआर उम्दा हुये है बहुत शुभकामनायें ।

कृपया ध्यान दे...

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