212—-212---212---212 |
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पूछते रह गए आप क्या कर चले? |
वो मेरी जिंदगी हादसा कर चले. |
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गुमटियाँ शह्र से जो हटा कर चले |
वो समझते रहे, वो भला कर चले |
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अफसरी इस तरह शान से हो रही |
सर झुका कर चले, दुम हिला कर चले |
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रोटियाँ बँट रहीं या नहीं देख लो |
राजधानी जो आये पता कर चले |
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बाद मुद्दत मिले हैं, मगर इस तरह |
जख्म जो भर रहा था, हरा कर चले |
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मंज़िलें खुद क़दम चूम लेंगी अगर |
मुश्किलों में भी इक रासता कर चले |
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ये सियासत का घर, ये हुकूमत का दर |
लोग जितने मिले, फासला कर चले |
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वैसे माँ बाप तो टोकने से रहें |
जा रहें है तो थोड़ा बता कर चले |
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फ़ासला तय हुआ और भी खुशनुमा |
जो कदम से कदम हम मिला कर चले |
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ये जहाँ खूबसूरत लगा इस कदर |
जब भी आँखों से चश्मा हटा कर चले |
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वो जो देते रहे बारिशों की दुआ |
धूप की चादरें भी बिछा कर चले |
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इस कदर तल्खियाँ देख अच्छी नहीं |
बागबां इक कली तो खिला कर चले |
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पेट की आग उनकी बुझे या नहीं |
गर्म चूल्हा मगर वो बुझा कर चले |
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कुछ तसल्ली उन्हें दे सके या नहीं |
हम मगर हाथ उनका दबा कर चले |
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ज्यूँ परिन्दों को फिर लौटना ही न हो |
इस तरह से शज़र वो हिला कर चले |
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Comment
आदरणीया राजेश दीदी, ग़ज़ल आपको पसंद आई जानकार आश्वस्त हुआ. ग़ज़ल की सराहना और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार. नमन. आपके मार्गदर्शन अनुसार शेर में संशोधन कर रहा हूँ. सादर
आदरणीय पंकज जी ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय गिरिराज सर, ग़ज़ल की सराहना और शेर दर शेर मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार. नमन. आपके मार्गदर्शन अनुसार संशोधन कर रहा हूँ. सादर
वाह वाह.. बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है मिथिलेश भैया,कहीं कहीं बिंदु को लेकर टंकण त्रुटी रह गई है जो आ० गिरिराज जी ने सपष्ट कर ही दी है |
गुमटियां शहर से जो हटा कर चले |
ये समझते रहें वो भला कर चले----वाह्ह्ह |
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कुछ तसल्ली उन्हें दे सके या नहीं |
हम मगर हाथ उनका दबा कर चले---बहुत उम्दा कहन |
एक शेर को इस तरह अपने चश्मे से देख रही हूँ ---- |
इस कदर तल्खियाँ देख अच्छी नहीं
बागबां इक कली तो खिला कर चले
आपको दिल से बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए .
आदरणीय मिथिलेश जी सुझााव को मान देने के लिये आपका बहुत बहुत आभार
आदरणीय मिथिलेश भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , दिली बधाइयाँ आपको , कुछ बातें सूझ रहीं है , अगर सही लगे तो स्वीकार कीजियेगा । |
वो मेरी जिंदगी हादसा कर चले. ---- बहुत सुन्दर |
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गुमटियां शहर से जो हटा कर चले ----- गुमटियाँ शह्र से जो हटा कर चले |
ये समझते रहें वो भला कर चले वो समझते रहे , वो भला कर चले |
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अफसरी इस तरह शान से हो रही |
सर झुका कर चले, दुम हिला कर चले -- अच्छा है |
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रोटियाँ बंट रही या नहीं देख लो --- रोटियाँ बंट रहीं या नहीं देख लो |
राजधानी जो आये पता कर चले |
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वो बिछड़ के मुझे बाद मुद्दत मिले बाद मुद्दत मिले हैं , मगर इस तरह |
जख्म भर सा रहा था, हरा कर चले --- ज़ख़्म जो भर रहा था , हरा कर चले |
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मंजिलें खुद कदम चूम लेगी अगर -- मंज़िलें खुद क़दम चूम लेंगी अगर |
मुश्किलों में भी जब रासता कर चले |
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ये सियासत का घर, ये हुकूमत का दर |
लोग है ये जुदा, फासला कर चले ----- लोग जितने मिले , फासला कर चले |
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वैसे माँ बाप तो टोकने से रहें |
जा रहें है तो थोड़ा बता कर चले -- लाजवाब ! |
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फ़ासला तय हुआ इस तरह खुशनुमा -- फ़ासला तय हुआ और भी खुशनुमा |
वो कदम से कदम जो मिला कर चले --- जब क़दम से क़दम हम मिला कर चले |
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ये जहाँ खूबसूरत लगा इस कदर |
जब भी आँखों से चश्मा हटा कर चले ---------- अच्छी बात कही |
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खूब दे तो चुके बारिशों की दुआ ------- -- वो जो देते रहे बारिशों की दुआ |
धूप की चादरें भी बिछा कर चले धूप की चादरें भी बिछा कर चले
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बागबां खुद ही दुश्मन जहाँ बाग़ का - जब आप बागबाँ को दुश्मन कह रहें हैं तो , सानी मे कली खिला के चलना मेल नही खा रहा है |
कम से कम इक कली तो खिला कर चले --- मेरे खयाल से -- आप भी सोच लीजियेगा |
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आग उनकी बुझे तो बुझे पेट की ----- ये शे र भी बात साफ नही कह रहा है |
गर्म चूल्हा मगर वो बुझा कर चले |
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कुछ तसल्ली उन्हें दे सके या नहीं |
हम मगर हाथ उनका दबा कर चले ------ इशारों मे बहुत अच्छी बात कही |
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अब परिंदे उड़े तो न लौटे कभी ---- ज्यूँ परिन्दों को फिर लौटना ही न हो |
इस तरह से शज़र वो हिला कर चले |
आदरणीय श्याम नरेन् जी ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
वाह बेहद खूबसूरत प्रस्तुति … हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय। |
आदरणीय रवि जी, आपकी सार्थक प्रतिक्रिया पाकर दिल खुश हो गया. आपको ग़ज़ल पसंद आई ये जानकार आश्वस्त हुआ हूँ. आखिरी शेर में 'अब' शब्द से काल दोष आ रहा है आपने बिलकुल सही कहा. आपके मार्गदर्शन अनुसार इस मिसरे को यूं कहा है- //जो परिंदे उड़े तो न लौटे कभी//---
ग़ज़ल की सराहना मार्गदर्शन और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
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