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सड़क के किनारे छाँव देता

एक दायरे के भीतर कैद

खुद घुटता हुआ मगर

हमें साँसें देता हुआ वृक्ष

कंक्रीट की घेराबंदी से

छोटी सी सीमा रेखा

में बंधा हुआ वह पेड़

और पिजड़े मैं कैद

मासूम और बेबस पक्षी

दोनों में कितना साम्य है

दोनों ही जीवित हैं

लेकिन स्वतन्त्रता को खोकर

दोनों की ही हदें

मानव ने बाँध दी हैं

और अब वे बस हमारी

आवश्यकता का साधन हैं

लेकिन वृक्ष पक्षी से

कहीं अधिक बेबस है

क्योंकि उसे चीत्कारने का भी

विकल्प प्राप्त नहीं है

उसे अपना जीवन

सींचने के लिए सीधे

पाताल तक धंसना है

और कोई विस्तार उसे

उपलब्ध ही नहीं है

और हम इतना आत्मकेंद्रित हैं

कि उसकी हरी भरी छांव

पाकर धन्य हुए जाते हैं

और कंक्रीट से कसी गयी

नकेल तक दृष्टि पहुँचती ही नहीं

मानव जो प्रकृति के लिए

मधुमक्खी से भी गौड़ है

खुद को सर्वेसर्वा मान बैठा है

हमारी सुविधाएं, हमारा विकास

कितना खोखला और स्वार्थी है

हम अकेले आगे बढ़ रहे हैं

बिना औरों को साथ लिए

और भूल जाते हैं कि अकेला

हमारा अस्तित्व संभव ही नहीं

कल यही ख़त्म होते वृक्ष

ये विलुप्त होते पक्षी

सब हमसे जवाब मांगेंगे

और हम कटघरे में

निरुत्तर और पछताते हुए

शर्म से सिर झुकाए खड़े   

प्रकृति द्वारा निश्चित 

विनाश का दंड भोग रहे होंगे I

.

(तनूजा उप्रेती )

मौलिक व अप्रकाशित

 

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Comment

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Comment by Tanuja Upreti on November 6, 2015 at 4:16pm

आभार राहिला जी 

Comment by Rahila on November 5, 2015 at 4:24pm
बहुत बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीया तनूजा जी । बहुत बधाई आपको इस सार्थक रचना के लिये ।
Comment by Tanuja Upreti on November 5, 2015 at 10:26am

आभार सतविंदर जी 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 4, 2015 at 11:13pm
उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया
Comment by Tanuja Upreti on November 4, 2015 at 8:59pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  मिथिलेश जी ,आदरणीय आबिद जी,आदरणीय श्याम नारायण जी ।


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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 4, 2015 at 7:53pm

आदरणीया तनूजा जी, पर्यावरण के प्रति सचेत करती और प्रकृति के निकट पहुंचाकर सोचने को विवश करती गहन वैचारिक प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर 

Comment by Abid ali mansoori on November 4, 2015 at 7:42pm

सड़क के किनारे छाँव देता

एक दायरे के भीतर कैद

खुद घुटता हुआ मगर

हमें साँसें देता हुआ वृक्ष

कंक्रीट की घेराबंदी से

छोटी सी सीमा रेखा

में बंधा हुआ वह पेड़

और पिजड़े मैं कैद

मासूम और बेबस पक्षी

दोनों में कितना साम्य है

दोनों ही जीवित हैं

लेकिन स्वतन्त्रता को खोकर

दोनों की ही हदें

मानव ने बाँध दी हैं!

वहुत खूब, पूरी रचना वास्तविकता का रूप लिए है, जितनी तारीफ़ की जाए कम है, हार्दिक वधाई स्वीकारें आदरणीया तनुजा जी!

 

Comment by Shyam Narain Verma on November 4, 2015 at 5:13pm

इस शानदार प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ! सादर 

कृपया ध्यान दे...

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