कहने को दोस्त हैं बहुत
लेकिन दोस्त,
सच में
तुम ही "एक" दोस्त थी मेरी
अपरिभाषित दिशाओं के पट खोल
सुविकसित कल्पनाओं को बहती हवाओं में घोल
मुझको अँधियाले ताल के तल से
प्रसन्नता की नभचुम्बी चोटी पर ले गई थी
वह तुम ही तो थी
हर हाल में मुझको
लगती थी अपनी
इतनी
कि मैं पैरों के घिसे हुए तलवों को
मन की फटी हुई चादर की सलवटों को
दिखाने में संकोच नहीं करता था...
सवाल ही नहीं उठता था
तुम इतनी अपनी जो थी
कभी कोई राज़ नहीं था
कोई बनावट नहीं थी
सफ़ाई थी, बस सफ़ाई
और थी अजीब अनोखी छलकती सादगी
हम दोनों की सच्चाई को जो
और सच कर देती थी
तुम्हारी नशीली हँसी की तरह
गुड़-सी बातों की तरह
पर अब बदले हुए माहौल में उलझे खयालों में
दोस्ती के धुआँसे खंडहरों में
ज़िन्दगी पलट गई
मानो सच्चाई सच्चाई न रही
दोस्ती के मिटे हुए घेरे के बाहर
उड़ती हुई धूल के बगूलों में
"आशना" और "बावफ़ा" होना
अब एक खतरनाक ठहाका है
ज़िन्दगी के नए बड़े-बड़े दर्द
अनबने-अधबने नए रिश्तों के बीच
नि:सन्देह छटपटाहट और उलझाव
इस दोस्ती के न होने का आज
दुख शायद तुमको भी है
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाषित)
Comment
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुशील जी।
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय समर जी।
ज़िन्दगी के नए बड़े-बड़े दर्द
अनबने-अधबने नए रिश्तों के बीच
नि:सन्देह छटपटाहट और उलझाव
इस दोस्ती के न होने का आज
दुख शायद तुमको भी है
शानदार प्रस्तुति आदरणीय .... यथार्थ को जीती इस रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।
आदरणीय आशीष जी, रचना आपको अच्छी लगी, आपका हार्दिक आभार।
आदरणीय सतविंदर कुमार जी, सराहना के लिए हार्दिक आभार। आशा है मनोबल बढ़ाते रहेंगे।
// सच्चा दोस्त अगर किसी के जिदगीं में है तो वही इतनी खूबसूरत कविता लिख सकता है जैसे आपने लिखी //
आदरणीया राहिला जी, आपसे मिली ऐसी सराहना से किसके मन में खुशी नहीं समायगी। हार्दिक आभार, आदरणीया।
आदरणीय मिथिलेश जी,
मेरी कविता को पढ़ने एवँ उस पर काव्यमय-भावनाओं भरी प्रशंसात्मक अभिव्यक्ति देने हतु हृदय से आभारी हूँ, आदारणीय । सादर।
सुंदर रचना
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