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आज़ाद देश के ग़ुलाम(लघुकथा)

मोहन कुमार आज एक शराबखाने के एक अलग-थलग कोने में बैठा था।मेज पर सामने एक बोतल शराब के साथ।जिस शराब को वह पीने की ज़बरदस्ती कोशिश कर रहा था,उसे शायद ही कभी पीया हो।एक हल्का सा ज़ाम बमुश्किल गले से उतार पाया।हल्के नशे में उसे अपने ज़िन्दगी का फ्लैशबैक नज़र आने लगा-
कॉलेज से पहले पत्रकारिता के प्रति रूचि..
इंटरमीडिएट के दौरान ही जाने माने टीवी पत्रकार को अपना आदर्श मान लेना...
अपनी रूचि के अनुरूप पत्रकारिता के उच्च कोर्स में प्रवेश लेना....
अपने आदर्श पत्रकार से मिलना...
उस पत्रकार द्वारा कॉलेज में विशेष भाषण के दौरान पत्रकारिता को लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ बताते हुए इसे देश, समाज और मानवता का सच्चा सेवक घोषित करना...
अपने आदर्श व्यक्तित्व से प्रेरित हो पूरी निष्ठा और मनोयोग से मेहनत कर पत्रकारिता में अव्वल दर्ज़े से डिग्री हासिल करना...
अपने पत्रकारिता के सेवा रूपी व्यवसाय की अपने आदर्श व्यक्तित्व के साथ शुरुआत करना...
पत्रकारिता में एक ज़बरदस्त मुकाम हासिल कर मोहन कुमार से मोहन कुमार 'सेवक' के तौर पर प्रसिद्धि पाना...
और.....वह एक ज़बरदस्त न्यूज़ स्टोरी तैयार करना जिसमें राज्य के कैबिनेट मंत्री और एक बड़े पत्रकार महोदय गबन एवम् सांठ-गाँठ के मामले में उजागर हो रहे थे....
मोहन के कानों में अभी भी गूंज रहे थे अपने आदर्श व्यक्तित्व के ये शब्द,"बहुत बढ़िया स्टोरी है।इस स्टोरी से बहुत फ़ायदा होने वाला है।बस इसे ब्रॉडकास्ट करने की बजाय इसे दफ़न कर दिया जाए।आखिर उस पत्रकार के आगे हम कुछ भी नहीं हैं।वो बड़ा जुगाड़ू है और हम उस जैसो के प्यादे मात्र।ज्यादा सत्य के पुजारी बनने से गुज़ारा नहीं होता।मोटी रकम लो और चुप रहो और बने रहो हमेशा के लिए मोहन कुमार 'सेवक'।"

.

मौलिक एवम् अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 10, 2015 at 4:39pm
रचना पर उपस्थित हो,मेरे प्रयास को सार्थक बनाने एवम् मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए हृदयतल से आभार एवम् दीपावली की शुभकामनाएं आदरणीय शेख सहज़ाद जी,आदरणीय तेजवीर सिंह जी,आदरणीय सर मिथिलेश वामनकर जी!

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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 10, 2015 at 1:53pm

आदरणीय सतविंदर जी बढ़िया प्रस्तुति हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

Comment by TEJ VEER SINGH on November 10, 2015 at 11:36am

हार्दिक बधाई आदरणीय सतविन्दर  जी !मीडिया की चकाचौंध के पीछे छिपी कलुसित और घिनौनी राजनीति को बयान करती खूबसूरत लघुकथा!

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 10, 2015 at 11:21am
"जैसा देश", "वैसा भेष, अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता" -- पत्रकारिता जगत, मीडिया व फिल्म जगत में ऐसा ही हो रहा है, नेकव कर्मठ लोगों को दिग्भ्रमित किया जाता है। साहित्य जगत भी यदि नहीं सचेत हुआ तो देश व समाज का क्या होगा ? बहुत सुंदर सत्य कथ्य को सुंदर अनुपम कृति से प्रस्तुत करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको आदरणीय सतविंदर कुमार जी।

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