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अपना पेट काटकर छौटे भाई को पढ़ाया।अपनी जवानी का अधिकत्तर हिस्सा मजूरी करके गुज़ारा।मेहनत करने में दिन न देखा न कभी रात।भाई होनहार जो था पढ़ाई में भी पूरा तेज और लोकव्यवहार में बिलकुल सधा हुआ।
पता नहीं क्या हुनर बख्शा था ऊपरवाले ने उसे।लोगों को झट से मना लेता था और उनके मन तक को पढ़ जाता था।
जब उसके कुछ करने का समय आया तो ,"मुझे नहीं रहना आपके साथ और न ही मैं आपके लिए कुछ कर पाऊँगा।मुझे मेरी ज़िन्दगी अपने तरीके से जीनी है।मैं जा रहा हूँ।मुझे ढूँढने की भी कभी कौशिश मत करना।" बस इतना कहकर वह चलता बना।
आज वही भाई सालों बाद घर आ रहा है।और रामचन्द्र इन्हीं ख्यालों में खोया हुआ है।
भाई को आते देख वह हैरान और दुखी हुआ ।उसका वह सुंदर सुडौल भाई,अब सुखकर काँटा हो गया है और उसकी एक टांग भी ठीक नहीं लगती।
उसकी हालत को देख रामचन्द्र का दिमाग पिछली यादों से भटक गया और उसके मन में फिर से भातृ प्रेम उमड़ पड़ा।
"भाई!मैं तुम्हे दुःखी छोड़ गया था और आज फिर आते ही दुःखी कर दिया।"
छौटे भाई ने उसके गले लगते हुए कहा।
"मुन्ना......"
इतना कहते ही रामचन्द्र का गला रुंध गया।
"भाई मैं देश के लिए एक ख़ुफ़िया एजेंसी में काम किया करता था। जिसके कर्मियों को किसी को भी अपनी असलियत नहीं बतानी होती।मैं जानता हूँ तुमने अपनी ज़िन्दगी मेरे लिए जी।पर मैंने अपनी देश के लिए।इसलिए तुम भी अपनी मातृभूमि के लिए ही तो जिए हो।काम के दौरान ही मुझे चोटें भी आयीं और मेरी ये टांग......."
"बस मुन्ना...."
इतना कहते हुए बड़े ने छौटे को कस कर बाँहों में भर लिया।
मौलिक एवम् अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 28, 2015 at 7:06am
बहुत बहत आभार आदरणीया pratibha pande जी
Comment by pratibha pande on November 24, 2015 at 12:10pm

 आपके  इस कथानाक में देश के लिए जीवन दे देने वालों के जीवन का कटु यथार्थ छिपा है , हार्दिक बधाई आपको इस रचना पर आदरणीय 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 24, 2015 at 11:57am
लघुकथा की सराहना के लिए हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 24, 2015 at 11:40am

"तुमने अपनी ज़िन्दगी मेरे लिए जी।पर मैंने अपनी देश के लिए।इसलिए तुम भी अपनी मातृभूमि के लिए ही तो जिए हो।"

ये पंक्तिया इस कहानी को सार्थकता प्रदान कर रही  है और  आदर्श सन्देश भी दे रही  है | बधाई स्वीकारे 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 20, 2015 at 10:43pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय तेजवीर जी।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 20, 2015 at 10:42pm
बहुत बहुत आभार आपका हौंसला अफ़ज़ाई के लिए आदरणीयSheikh Shahzad Usmani जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on November 20, 2015 at 6:59pm

बहुत मार्मिक रचना आदरणीय सतविन्दर सर जी! बहुत बधाई आपको ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 20, 2015 at 4:29pm
उम्दा कथानक को बेहतरीन लघु-कथा में बेहतरीन अंदाज़ में प्रस्तुत करते हुए जीवन के और त्याग के कड़वे सच को यूँ बख़ूबी पाठकों से साझा करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आदरणीय सतविंदर कुमार जी ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 20, 2015 at 2:31pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय Sunil Verma जी।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 20, 2015 at 2:27pm
बहुत बहुत आभार आपका रचना पर उपस्थित होकर प्रोत्साहित करने के लिए आदरणीया राहिला जी।

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