जब
तुम हंसती हो
झरते हैं,
दशों दिशाओं से
इंद्रधनुषी झरने
हज़ार - हज़ार तरीके से
नियाग्रा फाल बरसता हो जैसे
तब,
सूखी चट्टानों सा
मेरा वज़ूद
तब्दील हो जाता है
एक हरी भरी घाटी में
जिसमे तुम्हारी
हंसी प्रतिध्वनित होती है
और मै,
सराबोर हो जाता हूँ
रूहानी नाद से
जैसे कोई योगी नहा लेता है
ध्यान में उतर के
अनाहत नाद की
मंदाकनी में
मुकेश इलाहाबादी ----
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
sabhee mitron ka bahut bahut aabhaar post pasandgee ke liye
बहुत ही दिलकश रचना है। आनन्द आया। हार्दिक बधाई, आदरणीय मुकेश जी।
shurkiaa Mithilesh jee is sarahna ke liye
आदरणीय मुकेश जी, सुन्दर भावाभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई
और मै,
सराबोर हो जाता हूँ
रूहानी नाद से
जैसे कोई योगी नहा लेता है
ध्यान में उतर के
अनाहत नाद की
मंदाकनी में
वाह क्या बात है आदरणीय भावनाओं से लबरेज़ से सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
bahut bahut aabhar mitra Sameer Kabber jee, Digvijay ji & shyamnarayan Verma jee
बहुत ही सुन्दर माननीय सदस्य महोदय पढ़ कर अदभुत आनंद मिला । हार्दिक बधाईयाँ आपको ।
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