For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐसे तो उसे इस घर में आये एक हफ्ता होने को आ रहा था किन्तु अभी भी वह एक अवांछित ही थी घर वालों के लिए I कसूर बस इतना था कि उसने इस घर के इकलौते बेटे के साथ प्रेम विवाह किया था I सिर्फ विवाह ही नहीं अलग रहने के बजाय वक़्त के साथ सब कुछ ठीक हो जाने की आस लिए वह इस घर में भी आ गयी थी I नतीजा !! अवांछित ......I पर वह भी थी एकदम जीवट किस्म की !ठान लिया था कि जब तक सब ठीक न हो जाएगा हार नहीं मानेगी I
उस दिन वह पानी पीने के लिए किचन की ओर जा रही थी कि माँजी के कमरे से आते स्वर को सुन उसके कदम खुद बखुद ठिठक गए I
' कुछ दिन तो और रुक जाती ! मैं क्या करुँगी तुम्हारे बिना ,काटने को आएगा अब ये घर I '
ओह! लगता है ,आज दीदी भी जा रही हैं I सोचा उसने I
'माँ ,तुम चिंता न करो !देखना धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा !अब भूल जाओ सब पुरानी बातें और एक नयी शुरुवात करो I आखिर कही न कही तो ब्याह होता ही न !!तो अपनी पसंद से ही सही I '
आज पहली बार ननद उसके पक्ष में बोली थी I उसकी हिम्मत थोड़ी बढ़ी थी I
'अब क्या ठीक ,और बे ठीक !जब बेटा ही अपना नहीं रहा तो किससे और कैसी उम्मीद !! 'और वह जोर से मुह खोल कर रो पड़ी थीं I
'माँ चुप हो जाओ न ! '
रुलाई के इस स्वर ने बहार कड़ी सौम्य को भीतर तक उद्वेलित कर दिया था I जहाँ हसी ख़ुशी का माहौल होना था घर और रिश्तो में भी सन्नाटा पसरा हुआ था I वो तो ऊपरी मन से रिसेप्शन रख दिया गया था ताकि जग हँसाई न हो I कितनी अजीब बात थीं न !बेटे कि भावनाओ की जगह जग की चिंता !! '
तभी एक और स्वर ने उसकी तन्द्रा भंग की I
'सुभाष की माँ ,अब जाने भी दो सबको ट्रेन छूट जाएगी I अब जो भाग्य में है वही होगा न '
अब उससे बाहर न रुका गया I सोचा उसने कभी न कभी किसी न किसी को पहल करनी ही होगी तो उम्र और रिश्ते के लिहाज से वही क्यों न करे I और वह भीतर चली गयी I उसे यूँ अचानक आया देख कर सब असहज हो उठे I
'आओ सौम्या,कुछ चाहिए ? 'ननद की आवाज़ थीं I
' जी माफ़ कीजिये बिना अनुमति भीतर आ गयी I कुछ पल रुक कर - 'मैं आप सबसे यह कहना \ चाहती हूँ कि जो हुआ सो हुआ ! अब मैं आपके एक परिवार का अभिन्न हिस्सा बन कर रहना चाहती हूँ I सब आश्चर्य से उसे देख रहे थे ,कितनी निर्भीकता से वह अपनी बात कह रही थीं I वह अब अपनी सास की तरफ मुखातिब हुई - 'माँ जी ,मैं ये तो नहीं कहती कि मैं आपकी बेटी बन के रहूंगी ,क्योकि मैं जानती हूँ कोई किसी कि जगह नहीं ले सकता !हां इतना भरोसा जरूर दिलाना चाहती हूँ कि एक अच्छी बहू बनने की कोशिश करुँगी !! प्लीज आप रोइए नहीं कह कर वह आगे बढ़ी और उनके गले लग गयी I कोई भी इस अप्रत्याशित के लिए तैयार नहीं था ,स्वयं दुर्गा देवी भी नहीं किन्तु वे इस प्रेम से परिपूर्ण अंकपाश का अधिक देर तक प्रतिरोध न कर पायी I उन्होंने बारी बारी से सबकी आँखों में झाँका I सबकी आँखों में आंसू और होठो पर मुस्कान थिरकती दिखी I पता नहीं कब बेटा भी दरवाजे पर आ खड़ा हुआ था I उसकी आँखों में भी स्पष्ट मनुहार था ' मान जाओ न माँ !! '
ये देख उनके मन का आसमान भी धीरे धीरे आँखों के रास्ते पिघलने लगा ,उनके हाथ बहू के सर की ओर बढ़ गए थे आर्शीवाद की मुद्रा में I
मन ही मन सोचरही थीं किस्मत से बहू तो संस्कारी और सुशील मिली हैं I
मौलिक व् अप्रकाशित
मीना पाण्डेय

Views: 589

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by meena pandey on December 11, 2015 at 1:10am

आगे से मैं आपकी बात का अवश्य संज्ञान लुंगी आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 7, 2015 at 8:12pm

 ' थोडा  यथार्थ होती तो अधिक् प्रभावकारी  होती

Comment by meena pandey on December 7, 2015 at 1:13am

प्रोत्साहन  के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय Shubharanshu pandey  जी 

Comment by meena pandey on December 7, 2015 at 1:11am

कथा पर आपकी उपस्थिति और हौसलाअफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय Dr विजय shankar  जी 

Comment by meena pandey on December 7, 2015 at 1:07am

प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय mohan Begowal  जी 

Comment by meena pandey on December 7, 2015 at 1:05am

प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय Sheikh Shehzad usmani जी 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 7, 2015 at 12:21am
कहानी अच्छी है , सराहनीय , बधाई , आदरणीय मीना , सादर।
Comment by Shubhranshu Pandey on December 6, 2015 at 11:18pm

आदरणीय मीना जी, 

सुन्दर भाव के साथ कही गयी कथा. शिल्प पर गुनीजन अपने विचार अवश्य देंगे...

सादर.

Comment by मोहन बेगोवाल on December 6, 2015 at 10:06pm

  समाज जिस दौर सी गुजर रहा है , कुछ समाजों में ऐसे विवाह सहज ही हो रहे , माँ बाप की  तरफ से भी विरोध कम हो रहा , इसी तरह की बात करती इस लघुकथा के लिए बधाई हो 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 6, 2015 at 12:10pm
" मन ही मन सोचरही थीं किस्मत से बहू तो संस्कारी और सुशील मिली हैं "
--बहुत बढ़िया समपन्न हुई है लघुकथा। आपकी उत्कृष्ट लेखनी को पुनः प्रमाणित करती हुई भावपूर्ण संकल्प पूर्ण रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको आदरणीया मीना पाण्डेय जी।
"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"बूढ़े न होने दें, बुजुर्ग भले ही हो जाएं। 😂"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service