नेताई गजल
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सदन में आप गर आओ वतन की बात मत करना
सहोदर जैसे आपस में गबन की बात मत करना /1
उड़ाए हमने चुपके से लँगोटों के लिए सच है
शहीदों के हों नंगे तन कफन की बात मत करना /2
कभी तुम बोल देते हो कभी हम बोल देते हैं
चुनावी बात सबकी ही वचन की बात मत करना /3
दिखा करते हैं फूलों सा मगर फितरत है शूलों सी
गले आपस में मिलने पर चुभन की बात मत करना /4
हमें सावन के अंधे सा हरा सब कुछ ही दिखता है
हमारे सामने कोई विजन की बात मत करना /5
है जनता की समस्या का हमारे पास डंडा हल
अगर उठ जाए थोड़ा सा दमन की बात मत करना /6
कहा हमने अगर विकसित तो विकसित देश है लोगो
यहाँ तुम झोपड़ी या फिर भवन की बात मत करना /7
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आ० भाई मिथिलेश जी , सदा आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहता है .उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार l
आ० भाई गोरखपुरी जी , प्रशंसा के लिए आभार l
आ० भाई विजय जी ,आपकी उपस्थिति से ग़ज़ल का मान अत्यधिक बढ़ गया .स्नेह के लिए आभार l
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद और मुबारकबाद कुबूल फरमाएं
अच्छी गज़ल के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय लक्ष्मण जी।
आ० भाई जयनित जी स्नेह aur प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आ० भाई मिथिलेश जी ग़ज़ल पर उपस्थिति से मन बढ़ने के लिए हार्दिक आभार .लमियों से अवगत करते रहें जिससे लेखन में सुधर किया जा सके . स्नेह के लिए पुनः आभार l
आ० भाई समर कबीर जी , ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .अनुरोध है कि जिन मिसरों का बयां साफ़ नहीं हो प् रहा उन को उद्धृत करे .जिससे सनक समाधान हो सके . सानुरोध धन्यवाद .
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