क्यों लेटी हो गुमसुम सी,
सिर्फ एक अंगडाई दो मुझे ,
ऐसे न दो तुम विदाई मुझे,
रास आती नहीं जुदाई मुझे !
क्यों चुप हो सन्नाटे सी,
कभी तो सुनाई दो मुझे
लें आती थी खुशबू तुम्हारी,
फिर वही पुरवाई दो मुझे !
सर्द रातों में रजाई ओढ़ातीं,
फिर वही रजाई दो मुझे
जिससे चिराग रोशन करतीं,
फिर वही दियासलाई दो मुझे !
जिससे मन में सुर घोलतीं
फिर वही शहनाई दो मुझे
जिससे गीत लिखे थे तुमपे.
वो नीली रोशनाई दो मुझे !
छत पर दिखो न दिखो,
चाँद पर दिखाई दो मुझे
या मुझे भी पास बुला लो,
वही कड़वी दवाई दो मुझे !
पर ऐसे न दो तुम विदाई मुझे,
कि रास आती नहीं जुदाई मुझे !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित”
Comment
छत पर दिखो न दिखो,
चाँद पर दिखाई दो मुझे
या मुझे भी पास बुला लो,
वही कड़वी दवाई दो मुझे !..................बहुत सुन्दर , बधाई प्रेषित करती हूँ इस सुन्दर रचना पर आपको आदरणीय प्रकाश जी
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