“सुनंदा .सुनंदा, सुन तो सही, इतनी उदास क्यों है?”
“कुछ नहीं माँ बस सर में थोडा दर्द है !”
“अच्छा ठीक है तू नहा कर आ मैं तेरे सर की मालिश कर देती हूँ !”
“तुम भी न माँ हर बात के पीछे ही पड़ जाती हो .... सुनंदा ने चिल्लाते हुए कहा !”
“तेरी रगों में मेरा ही खून दौड़ रहा है सुनंदा, मैं सब समझ रहीं हूँ, तूने अपने पिता की म्रत्यु के बाद उनके दवाई बनाने के कारखाने को इतने अच्छे से संभाला, कभी भी तूने मुझे उनकी कमी महसूस नहीं होने दी, आज अगर वो जिन्दा होते तो भी क्या तू ऐसे ही मुझ पर चिल्लाती ? जरूर कोई परेशानी है ,बता तो सही क्या बात है ?” सुनंदा अब माँ को पकड़ कर रोने लगी , उसका पूरा आँचल भिगो दिया और बोली , ‘माँ एक बहुत बड़ी फार्मा कंपनी का आर्डर था ,हमने पूरा भी किया, पर कुछ खराबी के कारण सारा माल रिजेक्ट हो गया बहुत नुक्सान हो गया है और अगर यह बात बाज़ार में फैल गयी तो मेरे पिता और कंपनी की साख धूल में मिल जायेगी और आगे से लोग काम देना बंद कर देंगें साथ ही लोगों की देनदारी और कर्मचारियों की तनख्वाह ..बस चार महीने में सब खत्म हो जायेगा !’.... माँ के चेहरे पर चिंता के भाव उभरे और खत्म हो गये ,बोलीं “बस इतनी से बात से घबरा गयीं, अरे एक छोटा सा पक्षी भी जब उड़ान भरना सीखता है तो कई बार गिरता है और तू तो उड़ान भर रही है ,कल सबसे पहले उस कंपनी के लोगों से बात कर की हम आपका आर्डर पूरा करेंगे और ये ले मेरी चेक बुक ,कल एक नयी गाडी खरीद ले , ड्राईवर को साथ ले जाना और वो जो इंडस्ट्रियल एरिया में अपना खाली प्लाट पड़ा है उसका नक्शा बनवा, भूमि पूजन का प्रबन्ध कर सभी जानकार उद्योगपतियों को किसी प्रतिष्ठित होटल के सभागार में भोजन पर आमंत्रित कर और बता एक शानदार प्रोजेक्ट हमारी कंपनी लगाने जा रही है !”
“माँ ,ये गलत सलाह है, इससे तो हम और ... !”.. “ अच्छा अब सही और गलत तू मुझे सिखाएगी , जैसा कह रही हूँ वैसा कर, और हाँ सभी कर्मचारियों को एक महीने की तनख्वाह एडवांस दे दे !”
सुनंदा ने ठीक वैसा ही किया, सब जगह यह सन्देश चला गया की यह कम्पनी उगता हुआ सूरज है और उसके बाद सप्लायर्स, कॉन्ट्रैक्टर्स की लाइन लग गयी, सभी कहते मैडम हमको एक बार सेवा का मौका दीजिये ,सुनंदा पैसे की बात करती तो लोग कहते मैडम पैसे तो आ ही जायेंगे ! नए- नए ऑर्डर्स भी आने लग गए अब हवा का रुख बदल चुका था, सुनंदा और उसकी माँ दोनों खुश थे , सुनंदा माँ को लेकर उसी पहाड़ी के ऊपर पहुँच गयी जहां बचपन मैं वह अपने पिता के साथ जाती थी ! वह एक बार फिर सबसे ऊंची चट्टान पर चढ़कर बादलों को छूने की कोशिश करने लगी ,एक नयी उड़ान के लिए !
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित”
Comment
यह कहानी बहुत ही प्रेरक है. अनुभव और अदम्य साहस के दम पर कुछ हासिल नहीं किया जा सकता !
हार्दिक बधाइयाँ आदरणीय हरि प्रकाशजी..
आदरणीय हरि भाई , मुझे आपकी कथा अच्छी लगी , उम्र के साथ आया अनुभव काम ही आता है और उसका कोई तोड़ नही होता ! आपको बधाई ।
आ० दुबे जी
यह पूरी कथा का विषय है थोडा और लम्बी होती तो और अच्छी बनती. सादर .
बढ़िया कथा लिखी है आदरणीय हरि प्रकाश भाई जी, बहुत बहुत बधाई
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