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तू जीता है,मगर ज़िंदा नहीं है (ग़ज़ल)

1222 1222 122

अगर दिल में तेरे करूणा नहीं है
तू जीता है, मगर ज़िंदा नहीं है

वो क्या समझे किसी की अहमियत को
कि जिसने कुछ,कभी खोया नहीं है

तेरी आँखों के मयखाने में बैठा
कहे ये दिल,कोई तुझ सा नहीं है

उगाते हैं जो दाना,उनके घर में
कभी चावल,कभी आटा नहीं है

मिलेगा फल यहीं कर्मों का तेरे
अलग कोई,कहीं दुनिया नहीं है

मेरी मंज़िल खड़ी है जिस जगह पर
वहां तक रास्ता जाता नहीं है
========================
(मौलिक व अप्रकाशित)

जयनित कुमार मेहता

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Comment by Ram Ashery on February 23, 2016 at 10:24pm

अति सुंदर रचना सहृदय  बधाई स्वीकार हो 

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 23, 2016 at 9:59pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, तहे दिल से शुक्रिया आपको।।

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 23, 2016 at 9:57pm

आदरणीय राम जी, आपको हार्दिक धन्यवाद।

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 23, 2016 at 9:57pm

आदरणीय फूल सिंह जी, हार्दिक धन्यवाद भाई जी आपको।

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 23, 2016 at 9:56pm

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी, आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आभारी हूँ।

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 23, 2016 at 9:54pm

आदरणीय नीलेश जी, हार्दिक धन्यवाद आपको।

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 23, 2016 at 9:51pm
आदरणीय अजय शर्मा जी, हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ आपके प्रति।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 23, 2016 at 1:52pm

बहुत ख़ूब जयनित जी, ख़ूबसूरत अश’आर के लिए दाद कुबूल कीजिए।

Comment by Ram Ashery on January 15, 2016 at 3:17pm

अति सुंदर रचना आपको बहुत  बहुत बधाई स्वीकार हो । 

Comment by PHOOL SINGH on January 15, 2016 at 10:15am

अति सुन्दर रचना...बधाई हो..

कृपया ध्यान दे...

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