२१२२/२१२२/२१२२/२१२
माँगते इंसाफ़ किस से बिस्मिलों के वास्ते
अदलिया थी दिल बिछाए क़ातिलों के वास्ते.
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रास्ते आपस में उलझे, मंजिलें पिन्हा हुईं,
रास्ते गरचे बने थे मंज़िलों के वास्ते.
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साहिलों पर कश्तियाँ महफूज़ रहती हैं मगर
कश्तियाँ कब थी बनाईं साहिलों के वास्ते.
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इक निगाहे-शोख से हम ने लड़ाई थी नज़र
चंद क़िस्से छोड़ आए महफ़िलों के वास्ते.
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कुछ तेरा ग़म और कुछ अग्यार की तंज़-ओ-निगाह
और भी आसाँ हुए हम मुश्किलों के वास्ते.
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हम पुराने लोग हैं ख़ुद में अधूरापन लिए
छोड़ जाएँगे ये दुनिया कामिलों के वास्ते.
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मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
शुक्रिया आ. शेख साहिब
शुक्रिया आ. रवि जी
वाह वाह क्या खूब ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय नीलेश जी पढ़कर मजा आ गया । सभी शेर कमाल है बधाई स्वीकार करें ।
शुक्रिया आ. महर्षि जी
शुक्रिया आ. गिरिराज जी
शुक्रिया आ. समर कबीर साहब
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