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ग़ज़ल -नूर-शायरों सा मिजाज़ रखता है.

२१२२/१२१२/२२ 

अपने दिल में वो राज़ रखता है,
शायरों सा मिजाज़ रखता है.
.
अब सियासत में आ गया है तो 
हर किसी को नवाज़ रखता है.
.
बात करता है गर्क़ होने की,
और कितने जहाज़ रखता है.
.
दिल से देता है वो दुआएँ जब
उन पे थोड़ी नमाज़ रखता है.
.
जानें कितनों से दिल लगा होगा
दिल में ढेरों दराज़ रखता है.     
.
ये सदी और ये  वफ़ादारी
जाहिलों से  रिवाज़ रखता है.
.
हर्फ़ उसके तो हैं ज़मीनी, पर
वो तख़य्युल फ़राज़ रखता है.
.
ये करम है ख़ुदा तेरा मुझ पर
तू मुझे बे-नियाज़ रखता है.
.
दर्द के सिलसिले मुसलसल हैं
‘नूर’ सब का रियाज़ रखता है.
.
निलेश "नूर"
.
मौलिक अप्रकाशित 

Views: 549

Comment

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Comment by Ram Ashery on January 29, 2016 at 3:07pm

अति उत्तम गजल आपको दिल से बधाई स्वीकार हो 

Comment by Ravi Shukla on January 29, 2016 at 11:29am

आदरणीय निलेश जी, शानदार  ग़ज़ल है. छोटी बह्र बहत बढि़या शेर कहे है दिली दाद कुबूल करें

Comment by Ram Ashery on January 22, 2016 at 11:11pm

बहुत अच्छे गजल आपको बहुत बधाई स्वीकार हो 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2016 at 12:07am

आदरणीय निलेश जी, शानदार और बेमिसाल ग़ज़ल है. छोटी बह्र पर आपका जादू देखते ही बनता है. बस दाद दाद ...दिल से दाद 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 19, 2016 at 6:09pm

शुक्रिया आ. सतविंदर जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 19, 2016 at 6:09pm

शुक्रिया आ. लक्ष्मण जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 19, 2016 at 6:08pm

शुक्रिया धर्मेन्द्र जी 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 19, 2016 at 5:27pm
बहुत ख़ूब।बधाई आदरणीय।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2016 at 6:44am

ये सदी और ये  वफ़ादारी
जाहिलों से  रिवाज़ रखता है.

क्या कहने ......

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 17, 2016 at 10:56pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय नीलेश जी, दाद कुबूल कीजिए

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