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हर हद को ही तोड़ा है बरसात के पानी ने
किस बात को माना है बरसात के पानी ने /1
उस वक्त तो सूखा था जीवन क्या हरा होता
अब गाँव डुबाया है बरसात के पानी ने /2
ये जश्न की बेला है सूखे की विदाई की
नदिया को भी न्योता है बरसात के पानी ने /3
मत खेत की बोलो तुम भाग्य ही ऐसा था
घर द्वार भी रौंदा है बरसात के पानी ने /4
कल रात सुना है फिर सूखे की शिकायत पर
किस किस को न तोड़ा है बरसात के पानी ने /5
पहले से ही क्या कम था भीगा हुआ दामन जो
अब और भिगाया है बरसात के पानी ने /6
दुखती हुई आँखों से मिलने पे कहा इतना
‘मुझसे भी तो नाता है’ बरसात के पानी ने /7
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आ0 भाई गोपाल नारायन जी हार्दिक धन्यवाद ।
आ0 भाई सलीम रजा जी प्रशंसा के लिए आभार ।
आ0 भाई गिरिराज जी उपस्थिति से गजल का मान बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद । आपकी और भाई मिथिलेश जी की बात से मैं भी पूर्णतः सहमत हूँ ।
आ0 भाई तेजवीर जी स्नेह के लिए आभार ।
आ0 भाई मिथिलेश जी प्रशंसा और उससे बढकर बेहतरीन सलाह के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ0 भाई श्याम नरायन जी, प्रशंसा के लिए आभार ।
आ0 भाई समर कबीर जी उपस्स्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद । त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिए आभार ।
वा वाह क्या बात है , सुन्दर .
आदरणीय लक्ष्मण भाई , अच्छी गज़ल कही है हार्दिक बधाइयाँ आपको । बहर के मामले मे मै भी आ. मिथिलेश भाई जी से सहमत हूँ ।
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