1222 1222 1222 1222
**********************************
भला तू देखता क्यों है महज इस आदमी का रंग
दिखाई क्यों न देता है धवल जो दोस्ती का रंग /1
सुना है खूब भाता है तुझे तो रंग भड़कीला
मगर जादा बिखेरे है छटा सुन सादगी का रंग/2
किसी को जाम भाता है किसी को शबनमी बँूदें
किसे मालूम है कैसा भला इस तिश्नगी का रंग/3
महज इक आदमी है तू न ही हिंदू न ही मुस्लिम
करे बदरंग क्यों बतला तू बँटकर जिंदगी का रंग/4
अगर बँटना ही है तुझको तो बँट तू रोशनी जैसा
कि बँट रंगीन हो जाता हमेशा रोशनी का रंग/5
अभी तक मीर गालिब थे चले आए हैं साहिर भी
‘मुसाफिर’ खूब महफिल में जमेगा शायरी का रंग/6
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आ० कान्ता बहन उत्साहवर्धन के लिए आभार l
आ० भाई तेजवीर जी ,उपस्तिति से ग़ज़ल का मान बढ़ने के लिए हार्दिक धन्यवाद l
आ० भाई समर कबीर जी , आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन से अस्वस्थ हुआ .इस स्नेह के लिए आभार l
सुना है खूब भाता है तुझे तो रंग भड़कीला
मगर जादा बिखेरे है छटा सुन सादगी का रंग-----वाह !!! क्या सादगी की रंगत आई है आपकी इस शानदार ग़ज़ल में। दाद कबूल फरमाइयेगा लक्ष्मण धामी जी ।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी जी!बहुत शान्दार गज़ल!
महज इक आदमी है तू न ही हिंदू न ही मुस्लिम
करे बदरंग क्यों बतला तू बँटकर जिंदगी का रंग/
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online