For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - चोरों के हाथों में मत रखवाली दो ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22  2

हाथों को पत्थर , आँखों को लाली दो

मुँह खोलो, चीखो चिल्लाओ , गाली दो

 

ऊँचे सुर में आल्हा गाओ , सरहद पर

वीरों को मंचों से मत कव्वाली दो

 

जिस बस्ती मे रहा हमेशा अँधियारा 

उस बस्ती को दिन में भी दीवाली दो

 

तुम पगड़ी पहनो ले जाओ केसरिया

लाओ सर पर मेरे टोपी जालीदो

 

छद्म वेश में राहू केतू आये फिर

अमृत नहीं उन्हे ज़हर की प्याली दो

 

कहीं मूर्खता की सीमा तो बाँधोगे

चोरों के हाथों में मत रखवाली दो

 

तुम ज़हनों को माजी तक ले कर जाना

आश्वासन हैं झूठे मत तुम ताली दो 

 

सूरज है गुस्से में, धरती बंजर है

सोच-समझ को तुम थोड़ी हरियाली दो

**************************
पुछल्ला  -
जिस महफिल की सभी सुराही खाली है
उस महफिल को साक़ी तो मतवाली दो

************************

 मौलिकएवँअप्रकाशित

Views: 707

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2016 at 7:42am

आदरणीय सौरभ भाई , आपने गज़ल पर शिर्कत की तो ग़ज़ल कहना सफल हो गया , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2016 at 7:41am

आदरणीय आशुतोष भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2016 at 7:41am

आदरणीय रवि भाई , हौसला अफज़ाई का दिली शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2016 at 7:40am

आदरनीय श्याम नाराइन भाई , आपका दिली शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2016 at 7:40am

आदरणीय मिथिलेश भाई , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2016 at 7:39am

आदरणीय तेज़ वीर भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2016 at 7:39am

आदरनीय समर भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपक दिली शुक्रिया ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 10, 2016 at 12:00am

सधी सुगढ़ सहज ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय गिरिराज भाईजी !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 29, 2016 at 2:29pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ पा रहा हूँ ..हमेशा की तरह लाजवाब ग़ज़ल ..इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सादर

Comment by Ravi Shukla on January 29, 2016 at 10:17am

आदरणीय गिरिराज जी बहुत बढि़या ग़ज़ल कही है आपने दिली दाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
14 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service