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उम्र का सफर ....

हम उम्र के साथी
शायद मेरी तरह
बूढ़े होने लगे हैं
केशों में चमकती चांदी
चेहरे की झुर्रियां
जीवन का सफर का
बेबाक आईना हैं

हाँ, सच
ये तो मेरी ही तरह बूढ़े हो चुके हैं
इनके हाथ काम्पने लगे हैं
मुंह की लार बस में नहीं है
ज़िंदगी को
बिना किसी सहारे के जीने वाले
बूढ़ी थकी लाठी पर
अपनी देह का बोझ लादे
डगमगाते पाँव लिए
जीवन का शेष सफर
तय करते नज़र आते हैं

क्या ! जीवन के सूरज का
अंजाम ऐसा ही होता है
क्या ! साँझ के आँचल में डूबता सूरज
इतना ही बूढा होता है
जितना मैं

ये बुढ़ापा है या सच्चाई का कहकहा
नेत्रों की मंद ज्योति को
न राह नज़र आती है न मंज़िल
देह अपनी ही साँसों की आवाज़ से
रूबरू होने लगती है
किसी चेहरे पे
अपनेपन का रंग नज़र नहीं आता
कभी मुझपे फक्र करने वाले
आज मिलने से भी कतराते हैं
मेरी हर बात को
हंसी में उड़ा जाते हैं
मेरी आँखों से बहती
अंतर्मन की घुटन को
बुढ़ापे के वज़ह से
आँख से बहता पानी समझ
मेरी व्यथा पर
मुस्कुराभर देते हैं

कोई मेरी बात को समझता नहीं
लोग मेरे बालों की सफेदी , आँखों की मंद रोशनी ,
कंपकपाते हाथों और पांवों की
दैहिक गलन को
बुढ़ापे का नाम देकर
संतुष्ट कर लेते हैं

उम्र के इस मोड़ पर
उनकी प्रतिक्रिया देखकर
मन ही मन मैं भी हंस लेता हूँ
कैसे समझाऊँ
मैं जो देह से अलग हूँ
बूढा नहीं हूँ
और जो बूढा है
वो मैं नहीं हूँ


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 451

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Comment by Sushil Sarna on February 3, 2016 at 1:04pm
आदरणीय laxman dhamiजी रचना में निहित भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2016 at 12:14am

बहुत खूब l

Comment by Sushil Sarna on February 2, 2016 at 6:42pm

आदरणीय    vijay nikore जी रचना में निहित भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on February 2, 2016 at 6:41pm

आदरणीय   Hari Prakash Dubey जी रचना में निहित भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by vijay nikore on February 2, 2016 at 3:35pm

उम्र के सफ़र का अच्छा चित्रण दिया है। हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील जी।

Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2016 at 1:45am

कैसे समझाऊँ

मैं जो देह से अलग हूँ

बूढा नहीं हूँ

और जो बूढा है

वो मैं नहीं हूँ.........बहुत सुन्दर ,हार्दिक बधाई आ. सुशील सरना जी ! सादर 

 

Comment by Sushil Sarna on January 31, 2016 at 7:28pm

आदरणीयू तेजवीर सिंह जी रचना में निहित भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by TEJ VEER SINGH on January 31, 2016 at 11:15am

हार्दिक बधाई  आदरणीय सुशील सरना जी!बहुत ही शानदार प्रस्तुति!

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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