उम्र का सफर ....
हम उम्र के साथी
शायद मेरी तरह
बूढ़े होने लगे हैं
केशों में चमकती चांदी
चेहरे की झुर्रियां
जीवन का सफर का
बेबाक आईना हैं
हाँ, सच
ये तो मेरी ही तरह बूढ़े हो चुके हैं
इनके हाथ काम्पने लगे हैं
मुंह की लार बस में नहीं है
ज़िंदगी को
बिना किसी सहारे के जीने वाले
बूढ़ी थकी लाठी पर
अपनी देह का बोझ लादे
डगमगाते पाँव लिए
जीवन का शेष सफर
तय करते नज़र आते हैं
क्या ! जीवन के सूरज का
अंजाम ऐसा ही होता है
क्या ! साँझ के आँचल में डूबता सूरज
इतना ही बूढा होता है
जितना मैं
ये बुढ़ापा है या सच्चाई का कहकहा
नेत्रों की मंद ज्योति को
न राह नज़र आती है न मंज़िल
देह अपनी ही साँसों की आवाज़ से
रूबरू होने लगती है
किसी चेहरे पे
अपनेपन का रंग नज़र नहीं आता
कभी मुझपे फक्र करने वाले
आज मिलने से भी कतराते हैं
मेरी हर बात को
हंसी में उड़ा जाते हैं
मेरी आँखों से बहती
अंतर्मन की घुटन को
बुढ़ापे के वज़ह से
आँख से बहता पानी समझ
मेरी व्यथा पर
मुस्कुराभर देते हैं
कोई मेरी बात को समझता नहीं
लोग मेरे बालों की सफेदी , आँखों की मंद रोशनी ,
कंपकपाते हाथों और पांवों की
दैहिक गलन को
बुढ़ापे का नाम देकर
संतुष्ट कर लेते हैं
उम्र के इस मोड़ पर
उनकी प्रतिक्रिया देखकर
मन ही मन मैं भी हंस लेता हूँ
कैसे समझाऊँ
मैं जो देह से अलग हूँ
बूढा नहीं हूँ
और जो बूढा है
वो मैं नहीं हूँ
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत खूब l
आदरणीय vijay nikore जी रचना में निहित भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी रचना में निहित भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।
उम्र के सफ़र का अच्छा चित्रण दिया है। हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील जी।
कैसे समझाऊँ
मैं जो देह से अलग हूँ
बूढा नहीं हूँ
और जो बूढा है
वो मैं नहीं हूँ.........बहुत सुन्दर ,हार्दिक बधाई आ. सुशील सरना जी ! सादर
आदरणीयू तेजवीर सिंह जी रचना में निहित भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।
हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी!बहुत ही शानदार प्रस्तुति!
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