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उस पार ...

सच मानिए
नदिया के उस पार तो
कुछ भी नहीं है
जो कुछ भी है
सब इस पार यहीं है
आरम्भ भी यहीं है
अंत भी यहीं है
खुद से मिलने का
खुद में समाया
जीव का अलौकिक
पंत भी यहीं है
उस पार तो
कुछ भी नहीं है //

एक घर से
दूसरे घर की दूरी
एक श्वास भर ही तो है //

एक स्वप्न और
यथार्थ की दूरी
एक श्वास भर ही तो है //

एक मिलन और
विछोह की दूरी
एक श्वास भर ही तो है //

फिर क्या है
नदिया के उस पार
कुछ भी तो नहीं है
एक भ्रम है उस पार
यथार्थ तो यहीं है
सवाल भी यहीं है
जवाब भी यहीं है
उससे मिलन के
भटके जीव के
मोक्ष का द्वार भी यहीं है
उस पार तो सच
कुछ भी नहीं है //

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on February 6, 2016 at 6:51pm

आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय  जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह के लिए  कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।

Comment by pratibha pande on February 6, 2016 at 2:59pm

दार्शनिक भाव लिया सुन्दर दिल को छू लेने वाली  रचना आपकी चिरपरिचित सशक्त कलम से ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुशील जी 

Comment by Sushil Sarna on February 6, 2016 at 12:39pm

आदरणीय सौरभ सर मेरी प्रस्तुति ने आपके ज़हन में 'मधुबाला' की रचना को याद दिल दिया इससे बड़ा मेरे लिए आपका आशीर्वाद क्या होगा। प्रस्तुति में निहित भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।  मैं आपके सुझाव पर अवशय अमल करूंगा और मधुबाला की रचना को अवशय देखूँगा।  आपका पुनः हार्दिक आभार। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2016 at 10:30pm

आदरणीय सुशील सरनाजी, वस्तुतः मुझे आपकी प्रस्तुत कविता पढ़ते हुए मधुबाला में संकलित अमर रचना ’इस पार प्रिये तुम, हो मधु है, उस पार न जाने क्या होगा..’ की बरबस याद आ गयी ! आपकी प्रस्तुति का मूल चाहे जहाँ से प्रेरित है लेकिन आपकी प्रस्तुति आश्वस्तिकारी है. वैसे इन्हीं विन्दुओं को शाब्दिक करती मधुबाला में संकलित उक्त गीत को भी एक बार देख लेना श्रेयस्कर होगा. गीति-तत्त्व के भी आयाम खुलते जायेंगे. 

हार्दिक शुभकामनाएँ.

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2016 at 12:11pm

आदरणीय   TEJ VEER SINGH जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह की कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2016 at 12:11pm

आदरणीय  मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह की कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।

Comment by TEJ VEER SINGH on February 5, 2016 at 10:31am

हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना  जी!बेहतरीन प्रस्तुति!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 4, 2016 at 10:58pm

आदरणीय सुशील सरना सर, सत्य को मुखर करती बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति हुई है. इस गहन वैचारिक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Sushil Sarna on February 4, 2016 at 7:26pm

आदरणीय समीर कबीर जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह की कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।

Comment by Sushil Sarna on February 4, 2016 at 7:25pm

आदरणीया कांता रॉय जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय सम्मान ने एक नयी ऊंचाई प्रदान की है। आपका तहे दिल से शुक्रिया।

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