उस पार ...
सच मानिए
नदिया के उस पार तो
कुछ भी नहीं है
जो कुछ भी है
सब इस पार यहीं है
आरम्भ भी यहीं है
अंत भी यहीं है
खुद से मिलने का
खुद में समाया
जीव का अलौकिक
पंत भी यहीं है
उस पार तो
कुछ भी नहीं है //
एक घर से
दूसरे घर की दूरी
एक श्वास भर ही तो है //
एक स्वप्न और
यथार्थ की दूरी
एक श्वास भर ही तो है //
एक मिलन और
विछोह की दूरी
एक श्वास भर ही तो है //
फिर क्या है
नदिया के उस पार
कुछ भी तो नहीं है
एक भ्रम है उस पार
यथार्थ तो यहीं है
सवाल भी यहीं है
जवाब भी यहीं है
उससे मिलन के
भटके जीव के
मोक्ष का द्वार भी यहीं है
उस पार तो सच
कुछ भी नहीं है //
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह के लिए कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।
दार्शनिक भाव लिया सुन्दर दिल को छू लेने वाली रचना आपकी चिरपरिचित सशक्त कलम से ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुशील जी
आदरणीय सौरभ सर मेरी प्रस्तुति ने आपके ज़हन में 'मधुबाला' की रचना को याद दिल दिया इससे बड़ा मेरे लिए आपका आशीर्वाद क्या होगा। प्रस्तुति में निहित भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया। मैं आपके सुझाव पर अवशय अमल करूंगा और मधुबाला की रचना को अवशय देखूँगा। आपका पुनः हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरनाजी, वस्तुतः मुझे आपकी प्रस्तुत कविता पढ़ते हुए मधुबाला में संकलित अमर रचना ’इस पार प्रिये तुम, हो मधु है, उस पार न जाने क्या होगा..’ की बरबस याद आ गयी ! आपकी प्रस्तुति का मूल चाहे जहाँ से प्रेरित है लेकिन आपकी प्रस्तुति आश्वस्तिकारी है. वैसे इन्हीं विन्दुओं को शाब्दिक करती मधुबाला में संकलित उक्त गीत को भी एक बार देख लेना श्रेयस्कर होगा. गीति-तत्त्व के भी आयाम खुलते जायेंगे.
हार्दिक शुभकामनाएँ.
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह की कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह की कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।
हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी!बेहतरीन प्रस्तुति!
आदरणीय सुशील सरना सर, सत्य को मुखर करती बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति हुई है. इस गहन वैचारिक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय समीर कबीर जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह की कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।
आदरणीया कांता रॉय जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय सम्मान ने एक नयी ऊंचाई प्रदान की है। आपका तहे दिल से शुक्रिया।
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