अपना अधिकार रहने दो ....
व्यथित हृदय
कुछ तो रहने दो मन में
व्यथा को शब्दों के लिबास मत दो
शब्द सज संवर के आएंगे
जाने क्या क्या कह जाएंगे
अपने मौन को
शब्दों के आश्रित मत करो
सफर में शब्द भाव बदल देते हैं
जो अपनी होती है
वही बात
शब्दों के परिधान पहन
पराई हो जाती है
अपनी बात को
लोचन में पिघलने मत दो
अन्यथा व्यथा का रूप बदल जाएगा
बात का अपनापन
परायेपन की आशंका से
व्यर्थ में गीला हो जाएगा
बात अपनी पराई हो जाएगी
जा के कहीं और सो जाएगी
जग हंसाई हो जाएगी
हृदय व्यथा को व्यर्थ में
शब्दों से मत अलंकृत करो
बस अपनी व्यथा
अपने पास ही रहने दो
कुछ भी खो लो लेकिन
अपनी बात पर
अपना अधिकार रहने दो
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया pratibha pande जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह के लिए कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।
जो अपनी होती है
वही बात
शब्दों के परिधान पहन
पराई हो जाती है ......बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुशील जी
आदरणीया मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह के लिए कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।
आदरणीय सुशील सरना सर बहुत बढ़िया प्रस्तुति.... हार्दिक बधाई
आदरणीया Samar kabeer जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह के लिए कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।
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