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विवाद समाप्त होते न देख,मामले को कोर्ट के सुपुर्द कर दिया।शनि को भी पार्टी बनाया गया,बकायदा समन भेजा गया।निर्धारित तारीख पर कोर्ट में उपस्थिति हेतु आवाज लगाई।सभी पार्टियां मुस्कुरा रही थी,हूंह अब शनि आयेंगे गवाही देने।तत्क्षण विटनेस बाक्स में भुजंग काला सुगठित शरीर,गदा लिए,दिव्य प्रकाश के साथ उपस्थित हुए।विस्मय से चकित न्यायाधीश ने शपथ की कार्रवाई कराई ।
"सत्य बोलूंगा,सत्य के सिवा कुछ नहीं बोलूंगा,जो भ्रमित है ,उन्हें भी सत्य पर चलना सिखाता हूँ।"
" तो प्रवेश पर रोक क्यों लगाई ?"
"मैंने कब रोक लगाई? लोग स्वयं डरते हैं, मेरे पास आने में, उल्टे सीधे कर्म करते हैं ,और मुझे दोष देते हैं।"
"फिर क्या करते हो?"
"मुझे जगाना पड़ता है,सीधे रास्ते लाने के लिए कभी,कभी पटखनी भी देना पड़ती है ।कभी ढाई साल,
कभी साढ़े सात साल अंकुश लगाए रखना पड़ता है।"
"तेल नहीं चढाने दे रहे हैं "
"मुझे काला तिल और काले तिल का तेल पसंद है,सोचा
था लोग समझेंगे और तिल के तेल का उपयोग स्वंय भी करेंगे जो सर्वोत्तम है।परंतु तिल की पैदावार ही बंद कर दी ,और चढा रहे हैं सोयाबीन का तेल,तथा गुणगान कर रहे हैं विदेशी जैतून तेल का।"
"हे न्याय प्रिय,आपने पधार कर हमें उपकृत किया,एक अंतिम सवाल,आप शनि देव हैं या शनि महाराज?"

यह तो इन्सानों की माया है ,उन्हें तो पत्थर को भगवान
बनाने की आदत है।

पवन जैन ,जबलपुर ।
( मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by मिथिलेश वामनकर on February 4, 2016 at 12:49am

आदरणीय पवन जैन जी, बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर.

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 3, 2016 at 11:19pm
आदरणीय पवन जैन जी , बधाई ,बहुत सुन्दर कथा , प्रसंगतः बहुत बड़ा संदेश दिया है आपने इस कथा से। हर धार्मिक आख्यान , कथा से , व्रत - उपवास से कुछ फल , कुछ अन्न जुड़े हैं और उनका उपयोग मौसम और शरीर की आवश्यकता से जुड़ा है , उनकें महत्व को कम नहीं करना चाहिए। यह भी उल्लेखनीय है कि विविध अन्न अपने निर्धारित स्वरुप में ही पूर्ण लाभ देतेहैं , उसे मिस्ठान बना कर खाने में नहीं। तिल को ही ले लें , विश्व में अधिकांश लोग सफ़ेद तिल को ज़रा सा भून कर खा लेते हैं , बड़े बड़े रेस्त्राओं में बुफे में भुना हुआ तिल ऐसे से ही सर्व किया जाता है , लोग खाते भी हैं। हम लोग उसकी खुटिया और गज़क बना कर खाते हैं , बनाना भी दीर्घ - प्रक्रिया और साथ में प्रभूत मात्रा में शक्कर , तिल से अधिक शक्कर का प्रभाव। तिल का महत्व अपनी जगह , मिस्ठान का अपनी जगह।
धार्मिक मान्यतायें यूँ ही नहीं बनाई गयी हैं , संस्कृति का विकास् यूँ ही नहीं हुआ है। उन्हें समझे बिना तिरस्कृत करना समझदारी तो नहीं है।
सादर।
Comment by Rahila on February 3, 2016 at 10:13pm
आदरणीय पवन सर जी!बहुत अच्छी रचना हुई । बेहद अद्भुत तरीके से रचना का तानाबाना बुना आपने । बहुत बधाई आपको।सादर
Comment by Samar kabeer on February 3, 2016 at 6:04pm
जनाब पवन जैन साहिब आदाब,भुत उम्दा,बेहतरीन तन्ज़ वाह,इस शानदार लघुकथा के लिये बधाई स्वीकार करें !
Comment by TEJ VEER SINGH on February 3, 2016 at 12:22pm

हार्दिक बधाई आदरणीय पवन जैन जी!बेहतरीन कटाक्ष!समाज को आइना दिखाती लघुकथा!

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