विवाद समाप्त होते न देख,मामले को कोर्ट के सुपुर्द कर दिया।शनि को भी पार्टी बनाया गया,बकायदा समन भेजा गया।निर्धारित तारीख पर कोर्ट में उपस्थिति हेतु आवाज लगाई।सभी पार्टियां मुस्कुरा रही थी,हूंह अब शनि आयेंगे गवाही देने।तत्क्षण विटनेस बाक्स में भुजंग काला सुगठित शरीर,गदा लिए,दिव्य प्रकाश के साथ उपस्थित हुए।विस्मय से चकित न्यायाधीश ने शपथ की कार्रवाई कराई ।
"सत्य बोलूंगा,सत्य के सिवा कुछ नहीं बोलूंगा,जो भ्रमित है ,उन्हें भी सत्य पर चलना सिखाता हूँ।"
" तो प्रवेश पर रोक क्यों लगाई ?"
"मैंने कब रोक लगाई? लोग स्वयं डरते हैं, मेरे पास आने में, उल्टे सीधे कर्म करते हैं ,और मुझे दोष देते हैं।"
"फिर क्या करते हो?"
"मुझे जगाना पड़ता है,सीधे रास्ते लाने के लिए कभी,कभी पटखनी भी देना पड़ती है ।कभी ढाई साल,
कभी साढ़े सात साल अंकुश लगाए रखना पड़ता है।"
"तेल नहीं चढाने दे रहे हैं "
"मुझे काला तिल और काले तिल का तेल पसंद है,सोचा
था लोग समझेंगे और तिल के तेल का उपयोग स्वंय भी करेंगे जो सर्वोत्तम है।परंतु तिल की पैदावार ही बंद कर दी ,और चढा रहे हैं सोयाबीन का तेल,तथा गुणगान कर रहे हैं विदेशी जैतून तेल का।"
"हे न्याय प्रिय,आपने पधार कर हमें उपकृत किया,एक अंतिम सवाल,आप शनि देव हैं या शनि महाराज?"
यह तो इन्सानों की माया है ,उन्हें तो पत्थर को भगवान
बनाने की आदत है।
पवन जैन ,जबलपुर ।
( मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय पवन जैन जी, बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर.
हार्दिक बधाई आदरणीय पवन जैन जी!बेहतरीन कटाक्ष!समाज को आइना दिखाती लघुकथा!
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