2122 1122 1122 22
सारे धर्मों की सही बात उठाई जाए,
उसकी इक बूँद हर इन्साँ को पिलाई जाए।
है समंदर ही समंदर मगर इन्साँ प्यासा
सूखे होठों की चलो कहाँ प्यास बुझाई जाए।
आज तक माफ़ किया जिनको समझ कर नादाँ
अब जरूरत है उन्हें आँख दिखाई जाए।
जेठ की गर्म हवाओं में भी बरसे सावन
मेहंदी प्यार की प्यार की मेहंदी जो हाथों में रचाई जाए।
खौफ की ज़द में घिरे मुल्क सभी हैं बेबस
शक्ति ऐसी किसी सागर में डुबाई जाए।इनकी तकलीफ़ भला कैसे मिटाई जाए।
आग में जिसकी झुलसते झुलसती हैं ये कूचे-गलियाँ
क्यों न हर बात वही जड़ से मिटाई जाए।
बह न जाए कहीं आँखों से शरम का पानी
दिल के बंजर आँगन में चलो मेढ़ बनाई जाए।
आज भी घास की रोटी ही निवाला जिनका
उनकी रूठी हुई किस्मत भी मनाई जाए।
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आ० गिरिराज भंडारी जी
आपके बहुमूल्य उत्साहवर्धन, सराहना, और इस्सलाह के लिए तहे दिल से आभारी हूँ.
अभी उर्दू के शब्दों के प्रयोग के साथ ज्यादा सहज नहीं हूँ और मेरा शब्द भण्डार भी उसके अनुरूप बहुत छोटा सा है, इसलिए आपके दिए सानी मिसरे को समझने का प्रयास कर रही हूँ.
ग़ज़ल पर आपके मार्गदर्शन की हमेशा ही आवश्यकता रहेगी. आप ज़रूर मुझे मेरी विधाजन्य हर गलती पर सुधारें,आपसे यही अपेक्षा है, अनुरोध है.
सादर.
सबसे पहले तो क्षमा माँग रहा हूँ कि मैं इस तथ्यपरक बातचीत में स्वयं अपनी मौज़ूदग़ी नहीं बना पा रहा हूँ. लेकिन इतना ज़रूर है, कि आदरणीय समर साहब के तीनों सुझाव कमाल के हैं. और, यही कुछ कहने केलिए मैं आया भी हूँ. बहुत खूब, आदरणीय !
मैंने जो कहा है, आदरणीया प्राचीजी, कि "हर तथ्य शेर का कथ्य नहीं बन सकता" उसके निहितार्थ को समझियेगा. आपके ही ’तथ्य’ को आदरणीय समर साहब ने कितनी खूबसूरतीसे क्या मोड़ दिया कि कथ्य माशाअल्लाह निखर आया ! लेकिन यहाँ न यूरेनियम पॉवर है, न ऑटोमिक प्लाण्ट ! कथ्य है तो मसाइल का है, आपसी अविश्वास का है जिसे या तो समन्दर में डुबाने की बात की गयी है, या, उसे मिटाने की बात की गयी है ! मेरा इशारा इसी ओर था.
आदरणीय समर साहाब्, आपकी सफल कोशिशों ने मंच पर सदस्यों-पाठकों को टिप्पणियाँ करने के क्रम में एक नयी राह दिखायी है !
आपका सादर आभार आदरणीय..
आदरणीय समर कबीर जी,
तींनो ही विकल्प बहुत बढ़िया हैं, कोई भी एक लिया जा सकता है...
इस ग़ज़ल पर इतना परिश्रम करने और इतना सारा समय देने के लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया.
मेरा चिंतन अब इस बात पर भी है की "हर तथ्य शेर का कथ्य नहीं बन सकता" तो आ० सौरभ जी के इस कहे को अभी और उदाहरणों और रिसर्च द्वरा समझने की कोशिश कर रही हूँ.
आप इसके आलोक में भी कुछ विचार ज़रूर साँझा करें .
सादर
कोशिशों को अनुमोदित करने केलिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय धर्मेन्द्रजी.
आदरणीय गिरिराज भाई, आपका सुझाव सही हुआ है. बहुत अच्छे..
बहुत अच्छा प्रयास है आदरणीया प्राची जी, सौरभ जी ने जो विस्तृत समीक्षा की है उसके बाद कुछ कहने को बचता नहीं। दाद कुबूल करें।
इस सुन्दर ग़ज़ल के हार्दिक बधाई l
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