For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुस्कुरा भर देती हूँ .....

मुस्कुरा भर देती हूँ .....

कुछ तो है
तेरे मेरे मध्य
अव्यक्त सा //

शायद कोई शब्द
जो अभिव्यक्ति के लिए
अधरों पर छटपटा रहा हो //

या कोई पीछे छूटा पल
जो समय की आंधी में
अपने अहसासों को
बिखरने की वज़ह ढूंढ रहा हो //

या हृदय के अवगुंठन में
कोई उनींदी से चेतना
जो किसी के
स्नेह्पाश की प्रतीक्षा में
नयन दहलीज़ पर
अधलेटी सी बैठी हो //

क्या है आखिर
ये अव्यक्त और अस्पष्ट सा
शायद एक जुगनू सी चाहत
जो कागज़ की कश्ती की मानिंद
पानी की लहरों से डरी
किनारों को तकती है//

रोज़ एक कोशिश होती है
मनोशब्दों को
कंदराओं से निकालने की
अभिव्यक्ति के
हर बंधन को लांघ जाने की //

थक जाती हूँ
अपनी नारीत्व को संभालते संभालते
काली रात के साथ
अपनी अभिव्यक्ति को
रात में दफ़न इक बना देती हूँ //

अव्यक्त भावों के लिए
अपनी आँखों को
ज़रिया बना लेती हूँ
कुछ कह नहीं पाती 
बस अपनी बेबसी पे
मुस्कुरा भर देती हूँ //

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 497

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on March 7, 2016 at 8:49pm

आ.   shree suneel जी प्रस्तुति में निहित भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on March 7, 2016 at 8:48pm

आ.   amita tiwari  जी प्रस्तुति में निहित भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on March 7, 2016 at 8:48pm

आदरणीय     मिथिलेश वामनकर  जी प्रस्तुति में निहित भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। 

Comment by shree suneel on March 7, 2016 at 10:49am
मुस्कुरा भर देती हूँ .....

अच्छी लगी प्रस्तुति आदरणीय... बहुत सुन्दर. बहुत-बहुत बधाई आपको. सादर.
Comment by amita tiwari on March 7, 2016 at 1:59am

बहुत बढ़िया।बहुत बहुत सुंदर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 7, 2016 at 12:23am

बहुत खूब 

Comment by Sushil Sarna on March 5, 2016 at 9:35pm

आदरणीय    narendrasinh chauhan     जी प्रस्तुति में निहित भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on March 5, 2016 at 9:34pm

आदरणीय समीर कबीर जी आपने सदा मेरी प्रस्तुतियों पर मेरी हौसला अफ़ज़ाई की है , बंदा आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार है। 

Comment by narendrasinh chauhan on March 5, 2016 at 7:18pm

खूब सुन्दर रचना , बधाई स्वीकार करें

Comment by Samar kabeer on March 5, 2016 at 6:10pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत अच्छी लगी आपकी ये कविता भी,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service