मुस्कुरा भर देती हूँ .....
कुछ तो है
तेरे मेरे मध्य
अव्यक्त सा //
शायद कोई शब्द
जो अभिव्यक्ति के लिए
अधरों पर छटपटा रहा हो //
या कोई पीछे छूटा पल
जो समय की आंधी में
अपने अहसासों को
बिखरने की वज़ह ढूंढ रहा हो //
या हृदय के अवगुंठन में
कोई उनींदी से चेतना
जो किसी के
स्नेह्पाश की प्रतीक्षा में
नयन दहलीज़ पर
अधलेटी सी बैठी हो //
क्या है आखिर
ये अव्यक्त और अस्पष्ट सा
शायद एक जुगनू सी चाहत
जो कागज़ की कश्ती की मानिंद
पानी की लहरों से डरी
किनारों को तकती है//
रोज़ एक कोशिश होती है
मनोशब्दों को
कंदराओं से निकालने की
अभिव्यक्ति के
हर बंधन को लांघ जाने की //
थक जाती हूँ
अपनी नारीत्व को संभालते संभालते
काली रात के साथ
अपनी अभिव्यक्ति को
रात में दफ़न इक बना देती हूँ //
अव्यक्त भावों के लिए
अपनी आँखों को
ज़रिया बना लेती हूँ
कुछ कह नहीं पाती
बस अपनी बेबसी पे
मुस्कुरा भर देती हूँ //
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. shree suneel जी प्रस्तुति में निहित भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आ. amita tiwari जी प्रस्तुति में निहित भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति में निहित भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
बहुत बढ़िया।बहुत बहुत सुंदर।
बहुत खूब
आदरणीय narendrasinh chauhan जी प्रस्तुति में निहित भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय समीर कबीर जी आपने सदा मेरी प्रस्तुतियों पर मेरी हौसला अफ़ज़ाई की है , बंदा आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार है।
खूब सुन्दर रचना , बधाई स्वीकार करें
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