2122 2122 2122 212
रात का सन्नाटा' मुझपे मुस्कुराया देर तक
हाथ पर उनको लिखा लिखके मिटाया देर तक
आज ऐसा क्या हुआ क्या साजिशें हैं शाम की
आरजू जिसकी नहीं वो याद आया देर तक
उल्फतें हैं हसरतें हैं और ये दीवानगी
नाम तेरा होंठ पे रख बुदबुदाया देर तक
है अज़ब मंज़र वफ़ा की रहगुज़र में आजकल
चाहतें उस शख्स की जिसने रुलाया देर तक
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Comment
आपके उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय ram shiromani pathak जी
रचना पटल पे आपका स्वागत है आदरणीय laxman dhami जी
रचना पटल पे आपका स्वागत है आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी
आदरणीय भाई ब्रिजेश जी ..रूमानी अहसास से सराबोर इस दिलकश ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें सादर
आ0 भाई बृजेश जी बहुत खूबसूरत अहसास पिरोये हैं आपने इस ग़ज़ल में। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई ।
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय Manoj kumar Ahsaas जी
अच्छे अश’आर हुए हैं आ. बॄजेश जी, दाद कुबूल करें
रचना पे आपके समय और उत्साहवर्धन के लिए आपका दिली शुक्रिया आदरणीय Kewal Prasad जी
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