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रात का सन्नाटा' मुझपे मुस्कुराया देर तक
हाथ पर उनको लिखा लिखके मिटाया देर तक
आज ऐसा क्या हुआ क्या साजिशें हैं शाम की
आरजू जिसकी नहीं वो याद आया देर तक
उल्फतें हैं हसरतें हैं और ये दीवानगी
नाम तेरा होंठ पे रख बुदबुदाया देर तक
है अज़ब मंज़र वफ़ा की रहगुज़र में आजकल
चाहतें उस शख्स की जिसने रुलाया देर तक
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Comment
//उल्फतें हैं हसरतें हैं और ये दीवानगी
नाम तेरा होंठ पे रख बुदबुदाया देर तक// बेहतरीन गज़ल के लिये दाद कुबूल करें. आ० बृजेश भाई जी
आपके स्नेहमई शब्दों से अतिप्रसन्नता की अनुभूति हुई आदरणीय Sushil Sarna जी हार्दिक धन्यवाद संग नमन ...
रात का सन्नाटा' मुझपे मुस्कुराया देर तक
हाथ पर उनको लिखा लिखके मिटाया देर तक
आज ऐसा क्या हुआ क्या साजिशें हैं शाम की
..... आरजू जिसकी नहीं वो याद आया देर तकवाआआह आदरणीय बृजेश जी वाह बड़े ही खूबसूरत अहसास पिरोये हैं आपने इस ग़ज़ल में। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं।
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