For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जलेबी बाई और जलेबियां (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

जलेबी चौक पर प्रसिद्ध चाट वाले की दुकान पर कॉलेज की कुछ लड़कियाँ समोसा-कचौड़ी के मज़े लेते हुए बगल की लोकप्रिय दुकान में जलेबियां बनते हुए ग़ौर से देख रहीं थीं।

"क्या देख रही हो बहनों, हमारी-तुम्हारी ही कथा सुनाती हैं जलेबियां!"

"क्या? क्या मतलब?" - एक ख़ूबसूरत चंचल लड़की ने पूछा।

"ये देखो, ये वाली कड़ाही है जलेबी का मायका। यहाँ माँ-बाप की पोटली से निकल कर रूप-रंग और सांचे में ढलकर गरम तेल में तली जाती हैं जलेबियां!" -यह कहकर शहर की मशहूर जलेबी बाई ने कड़ाही में केसरिया जलेबियां बड़े से झारे (झज्जर) से अलटी-पलटीं और एक घान दूसरी कड़ाही में डालते हुए कहा- "ये देखो, ये है इन जलेबियों के मीठे सपनों वाली ससुराल! इनको यूँ ससुराल जाना ही पड़ता है!"

यह सुनकर समोसा-कचौड़ी खाती सभी लड़कियाँ ज़ोर से हँसने लगीं।

"हँस लो बहनों, यही खाने-पीने, खेलने-कूंदने और हँसने के दिन हैं तुम्हारे!"- जलेबी बाई ने पहले वाली कड़ाही में से जलेबियों का दूसरा घान (ट्रे) गरम चाशनी वाली कड़ाही में डालते हुए कहा- "ये जो मीठी चाशनी है न, इसे बस दलदल ही समझो, ससुराल का दलदल, जलेबियों की तरह लड़कियों को इसमें फंसकर यहाँ का सबकुछ अपना लेना पड़ता है मायके का सबकुछ भूलकर!"

अब वे लड़कियाँ कुछ गंभीर सी हो गईं थीं। वे ग़ौर से चाशनी वाली कड़ाही में डुबकी लगाती जलेबियों को देखने लगीं। फिर उन्होंने उन लड़कों को देखा जो बड़े चाव से जलेबियां खा रहे थे, कोई सिर्फ जलेबियां, तो कोई दही के साथ और कुछ लड़के बड़े से गिलास में दूध में डूबी, मसली हुई जलेबियों के मज़े ले रहे थे!

मुस्कराते हुए जलेबी बाई ने कहा- "इन जलेबियों की तरह ससुराल वाले बहुओं के रूप में लड़कियों के भी मज़े लेते हैं, जो सबको खुशियाँ बांट-बांट कर ख़ुद बस पिसती रहती हैं!"

"बात तो सही कह रही हैं दीदी आप! लेकिन यह तो बताइये कि जलेबी की यह मशहूर दुकान आप ख़ुद अकेले चलाती हो? - एक शादीशुदा लड़की ने पूछ ही लिया।

सुनकर जलेबी बाई का चेहरा उतर गया, लेकिन तुरंत ख़ुद को संभालती हुई बोली- "और क्या, आदमी के शरीर में तो दम ही नहीं रही, नशे में धुत्त पड़ा रहता है कहीं! वो तो मायके में माँ ने जलेबियां बनाना सिखा दिया था, सो यहाँ ससुराल में इसी काम से घर चला रही हूँ बहना!" फिर पीछे मुड़कर उसने कहा- "ये दोनों बेटियाँ सहारा देती हैं हमें!"

"इनको स्कूल भेजती हो या नहीं!" -एक लड़की ने पूछा

"क्यों नहीं भेजूंगी, कमा किस लिए रही हूँ बहना, इन्हें अपने जैसा अनपढ़ थोड़े न रखूंगी, ये भी बढ़िया जलेबियां बना लेती हैं! अपनी माँ की तरह मैं भी इन्हें कुछ और भी हुनर सिखा कर ही ससुराल भेजूंगी, लेकिन पढ़ा-लिखा कर ! जितना जो भी बन सकेगा, करूँगी, ज़माना बहुत बदल गया बहना!"


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 990

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 29, 2017 at 6:47am
मेरी इस लघुकथा पर समय देकर अनुमोदन व हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय पाठकगण व सुधीजन।
Comment by Shubhranshu Pandey on April 25, 2016 at 7:48pm

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, जिलेबी ने लार टपका ही दिया था. भोपाल के पोहे की भी याद आ गयी.

अब कथा पर आते हैं.लड़कियों का चाट की दुकान से जलेबी की दुकान पर नजर डालने का कोई मतलब नहीं सध पा रहा है. इसके साथ साथ अचानक ही जलेबीबाई का जलेबी बनाते बनाते मायका और ससुराल का सम्बन्ध बताना कथा की तरतम्यता में थोडी़ हड़बडा़हट दिखा रहा है.

 "ये जो मीठी चाशनी है न, इसे बस दलदल ही समझो, ससुराल का दलदल, जलेबियों की तरह लड़कियों को इसमें फंसकर यहाँ का सबकुछ अपना लेना पड़ता है मायके का सबकुछ भूलकर!" ...ससुराल को पहले से ही एक दलदल का रुप बता देना कथा को न्याय नहीं दे पा रहा है.साथ ही, मेरे विचार से, अगर जिलेबी मायका की कडा़ही और बेसन की कसावट को भूल जायेंगी तो ससुराल की चाशनी कैसे सोख पायेंगी? क्योंकि जिलेबी मायके के गर्म तेल के संस्कारों से ऎसी बन जाती है कि वो ससुराल की चाशनी को आत्मसात कर लेती है. और वो भी अपने को भूल कर नहीं.

 "इन जलेबियों की तरह ससुराल वाले बहुओं के रूप में लड़कियों के भी मज़े लेते हैं, जो सबको खुशियाँ बांट-बांट कर ख़ुद बस पिसती रहती हैं!"......जलेबी का धर्म ही है मीठे हो कर दूसरों को आनन्द देना. अगर जिलेबी कड़वी हो या दांत तोड़ हो तो वो खाने से बच जायेंगी लेकिन क्या उनके जिलेबी होने का कोई अर्थ रह जायेगा? शायद नहीं.फ़िर वो मायके में रहे या ससुराल में किसी काम की नहीं होगीं. 

जिलेबी बाई का अपनी कथा पर आना और स्त्री शिक्षा और स्वावलम्बी होने की बात एक अलग कथा का भान करा रही है.

सुधी जन इस पर अपने विचार देंगे.

सादर.

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 20, 2016 at 11:42am
रचना पर उपस्थित हो कर कथा के उद्देश्य को अनुमोदित करते हुए प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय रामबली गुप्ता जी।
Comment by रामबली गुप्ता on April 20, 2016 at 11:03am
जनाब उस्मानी जी हमारे समाज की जमीनी हकीकत को बयां करती इस लघुकथा के लिए तहे दिल से मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ।सादर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 15, 2016 at 9:00am
रचना पर उपस्थित हो कर हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहब व आदरणीय सतविंदर कुमार जी।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 14, 2016 at 9:17pm
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद जी।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 13, 2016 at 9:20pm
मोहतरम जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब ,जलेबियों के ज़रिये मायके और ससुराल का सन्देश देता हुआ बहुत ही सुन्दर मंज़र खींचा है आपने लघु कथा में। ... दिल से मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service