२१२२/२१२२/२१२२/२१२ आप पहले झोपडी तो इक बनाकर देखिये ख्वाब फिर महलों के भी दिल में सजा कर देखिये मैं नहीं हूँ तो हुआ क्या ये ग़ज़ल मेरी तो है मेरी गजलें भी कभी तो गुनगुना कर देखिये जिस तरफ देखोगे, तुमको बस नजर आयेंगे हम है मगर बस शर्त इतनी मुस्कुराकर देखिये है विरह के बाद में ही यार मिलने का मज़ा आग पहले ये विरह की खुद लगा कर देखिये चीज़ मय अच्छी बुरी है आप मत बोले अभी |
जाम पहले ओंठो से अपने लगाकर देखिये
मौलिक व अप्रकाशित
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आदरणीय आशुतोष जी बढिया गजल कही है आपने दिली बधाई स्वीकार करें यदि गजलों शब्द टंकण त्रुटि नहीं है तो हम भी आदरणीय गिरिराज जी की बात से सहमत है । सादर ।
आदरणीय भाई धर्मेन्द्र जी ..रचना को आपका स्नेह मिला और मुझे इससे नयी उर्जा मिली ..सादर धन्यवाद के साथ
आदरणीया राज जी ..आपने जो संसोधन किया है उससे शेर अच्छा लग रहा है मैं संसोधन कर लूँगा ..आपके मार्गदर्शन और रचना पर उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ ..सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय मिथिलेश जी ...आपकी रचनाओं को पढ़कर और अपने रचना पर आपके स्नेहिल मार्गदर्शन से हौसला बना रहता है .आपके मशविरे के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर
आदरणीय भाई साब ..काफी लम्बे अरसे के बाद मंच से जुड़ पाया ..मेरी रचना धर्मिता की इस यात्रा पर आपके साथ चलते हुए मैंने सतत सीखा ..आपके मशविरे पर अमल करूंगा और रचना संसोधित कर लूँगा ..आपके ऐसे स्नेह और आशीरवाद की कामना के साथ ..सादर
आदरणीय सुशील जी ..आप सब के स्नेह और मार्गदर्शन से सीखने का यह सिलसिला बदस्तूर जारी है
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर
अच्छा प्रयास है आदरणीय आशुतोष जी, दाद कुबूल करें।
आदरणीय आशुतोष जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई. यह भी अवश्य है कि मिसरों के विन्यास को बदलकर ग़ज़ल में निखार लाया जा सकता है. गुणीजनों ने भी इस तरफ इशारा किया है. सादर
वाह वाह दिलकश ग़ज़ल कही है | एक मिसरे को इस तरह कहना चाहूँगी शायद आपको भी मंजूर होगा ....
जाम पहले ओंठो से अपने लगाकर देखिये----जाम होठों से जरा पहले लगाकर देखिये
बहुत बहुत बधाई आ० आशुतोष जी
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