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ग़ज़ल
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आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये
और मासूम-सा दिखा जाये
केतली फिर चढ़ा के चूल्हे पर
चाय नुकसान है, कहा जाये
उसकी हर बात में अदा है तो
क्या ज़रूरी है, तमतमा जाये ?
फूल भी बदतमीज़ होने लगे
सोचती पोर ये, लजा जाये
रात होंठों से नज़्म लिखती हो,
कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ?
रात होंठों से नज़्म लिखती रही
चाँद औंधा पड़ा घुला जाये ..
काव्य-संग्रह छपा लिया उसने
अब तो उसका कहा सुना जाये
कौन इन्सान क्या पता ’सौरभ’
किस कहानी में नाम पा जाये
**********
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
// मुझे पसंद आई आपकी यह ग़ज़ल //
मेरे काम के जितने शब्द थे मैंने चुन लिए, आदरणीया !
शुक्रिया.. शुक्रिया..
सर ग़ज़ल कहनी तो नहीं आती पर पढनी और सुननी तो आती है | क्या कहूँ पर मुझे पसंद आई आपकी यह ग़ज़ल | सादर |
आदरणीय समर साहब, एक शेर में थोड़ी कूद-फाँद की हमने.. एक दृश्य बतौर ख़ास आपके लिए -
रात होंठों से नज़्म लिखती रही
चाँद औंधा पड़ा घुला जाये ..
भाई नादिर साहब, आपकी सदाशयता के हम सदा से काइल रहे हैं. प्रस्तुति पर आपकी अहम मज़ूदग़ी के लिए हार्दिक धन्यवाद
शुभ-शुभ
// क्या बात है //
आदरणीया कल्पना जी, कुछ नहीं !
शुक्रिया !! .. :-))))
आदरणीय रवि शुक्लजी, आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया इस प्रस्तुति को समृद्ध कर रही है. हार्दिक धन्यवाद भाईजी.
//आदरणीय मिथिलेश जी ने जैसे इस पर मय से नुकसान का जुम्ला कहा है उसी तर्ज पर देखें तो दूसरे शेर के सानी मे चाय से नुकसान पढ़ने में आता है किन्तु बह्र ? //
वस्तुतः कारक कीविभक्तियाँ कई बार संज्ञा की दशा पर भी निर्भर करती हैं कि वे प्रयुक्त हों या न हों. जैसे, राम घर गया जैसे वाक्य का अर्थ ही है कि राम घर को गया. किन्तु, ऐसे वाक्यों में अक्सर कर्म की विभक्ति छुपी रहती है. इसी तर्ज़ पर कई वाक्य होते हैं. कई बार कोई संज्ञा अपने आप में अपने गुण का प्राकट्य हो जाती है. इसी हिसाब से चाय नुकसान है जैसे वाक्य की संभावना बन पाती है. मय से नुकसान या चाय से नुकसान एक बात है. लेकिन शराब नुकसान है या चाय नुकसान है का अर्थ है कि उनसे सिवा नुकसान के कुछ नहीं होता. अब इसके सापेक्ष मिसरे को पढ़िये तो कुछ क्लीयर हो. केतली चढ़ा कर अगला चाय को ही नुकसान का पर्याय बताये तो क्या प्रतीत होगा !
और, हुज़ूर, (उँगलियों की) पोर अगर ये सोचने लगे कि फूल भी बदतमीज़ होने लगे तो ऐसी महीनी को समझने की ज़रूरत नहीं, इसे इण्टर्नलाइज़ करने की ज़रूरत होती है .. हा हा हा हा.....................
सादर
आदरणीय सुलभ अग्निहोत्री जी, आपकी सारस्वत उपस्थिति तो जैसे पुलकित कर गयी ! आपका उत्साह और अनुमोदन एक-एक शब्द के साथ स्वीकार कर शिरोधार्य कर रहा हूँ.
सादर
वाह सर | क्या बात है |
आदरणीय सौरभ जी बहुत ही अच्छी और नये प्रतीको से सजी गजल से आपने मंच को नवाजा है इसके लिये आपको बहुत बहुत बधाई । देर से आने का ये लाभ हुआ कि ग़ज़ल पढ़ते समय जो प्रश्न दिमाग में आये थे उनके बारे में विस्तार से चर्चा हो चुकी है जानकारी मिली । मतले में चेहरा चढ़ाने के बाद दूसरे शेर में केतली चढाने का भाव देखा जाए तो शेर खुद समझ आ जाएगा इस लिये गजल के साथ आखिर तक बने रहने की जरूरत है । वैसे आदरणीय मिथिलेश जी ने जैसे इस पर मय से नुकसान का जुम्ला कहा है उसी तर्ज पर देखें तो दूसरे शेर के सानी मे चाय से नुकसान पढ़ने में आता है किन्तु बह्र ? लिहाजा भाव पकड़ कर गजल में आनन्द के गोते लगा रहे है । किसी तकनीकी खराबी से लेटेस्ट ब्लाग दिखाई नही दे रहे है पर आप लोगो के कमेंटस से इस गजल के सूत्र वाक्य ' फूल भी बदतमीज होने लगे' से यहां आए और चर्चा में शामिल हो गये । आदरणीय समर साहब के कथनानुसार बड़ी महीन सोच है । पुन: आपको इसके लिये बहुत बहुत बधाई । सादर
प्रत्येक शेर लाजवाब हुआ है सौरभ जी !
आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये
और मासूम.सा दिखा जाये ........... क्या गजब का मतला हुआ है - वाह !
केतली फिर चढ़ा के चूल्हे पर
चाय नुकसान है, कहा जाये ............ धारदार व्यंग्य, वाकई मजा आ गया।
उसकी हर बात में अदा है तो
क्या ज़रूरी है, तमतमा जाये ............ बहुत बढि़या शेर
फूल भी बदतमीज़ होने लगे
सोचती पोर ये, लजा जाये ............... क्या बात है जी !
रात होंठों से नज़्म लिखती हो
कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ................ सिपसिपा का मतलब समझने के बाद तो मजा ही आ गया। बधाई आपको इसलिये कि हिन्दी गजल का शब्द भंडार भी तो बढ़ाना है। अगर आंचलिक शब्द कुछ लोगों को समझ नहीं आते तो तमाम उर्दू शब्द भी तमाम लोगों को समझ नहीं आते। हिन्दी शब्दों का, आंचलिक शब्दों का आप जितनी सफलता से प्रयोग करने वाले कम ही हैं।
काव्य.संग्रह छपा लिया उसने
अब तो उसका कहा सुना जाये .............. अच्छा है।
कौन इन्सान क्या पता ’सौरभ’
किस कहानी में नाम पा जाये .................. बहुत अच्छा है।
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