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ग़ज़ल - फूल भी बदतमीज़ होने लगे // - सौरभ

2122  1212  22/112

ग़ज़ल
=====
आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये
और मासूम-सा दिखा जाये

 

केतली फिर चढ़ा के चूल्हे पर
चाय नुकसान है, कहा जाये

 

उसकी हर बात में अदा है तो
क्या ज़रूरी है, तमतमा जाये ?

 

फूल भी बदतमीज़ होने लगे
सोचती पोर ये, लजा जाये

 

रात होंठों से नज़्म लिखती हो,
कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ? 

 

रात होंठों से नज़्म लिखती रही 
चाँद औंधा पड़ा घुला जाये .. 

 

काव्य-संग्रह छपा लिया उसने
अब तो उसका कहा सुना जाये

 

कौन इन्सान क्या पता ’सौरभ’
किस कहानी में नाम पा जाये
**********
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1470

Comment

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Comment by Samar kabeer on May 2, 2016 at 11:53pm
जनाब सौरभ पांडे जी आदाब,वाक़ई बहुत मासूम ग़ज़ल कही है आपने, मतले का जवाब नहीं ।

"फूल भी बदतमीज़ होने लगे
सोचती पोर ये, लजा जाये"

इस शैर की महीनी ने मुझे देर तक रोके रखा, बाक़ी के अशआर भी ख़ूब हुए हैं, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 10:45pm

भाई गनेश जी, ग़ज़ल अच्छी लगी, यही प्रयास का सुफल है. केतली वाला शेर मतले के ठीक बाद का शेर है. त्वरित पाठकीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद ..

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 10:42pm

आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी सदाशयता के लिए हार्दिक धन्यवाद. 

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 10:39pm

आदरणीय तेज़वीर सिंहजी, आपकी साफ़ग़ोई मुग्धकारी है. यह सही है कि रचनाओं का शिल्प एक ओर, उसके कथ्य से ही आम पाठक जुड़ता है. आपको कथ्य के तौर पर लिखा पसंद आया, यह मेरे लिए भी सौभाग्य की बात है. 

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 10:37pm

आदरणीय अनुज जी, आपकी उपस्थिति प्रभावी लगी. संभवतः आप पहली बार मेरी किसी रचना पर उपस्थित हुए हैं. आपके नज़रिये से आगे भी वाकिफ़ होने की अपेक्षा बनी रहेगी. सहयोग और साहचर्य केलिए धन्यवाद 

शुभ-शुभ


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 2, 2016 at 8:45pm

मतला बहुत ही खुबसूरत, सीधे ध्यान आकर्षित करता है किन्तु केतली वाला शेर मुझे कमजोर सा लगा . अदा वाला शेर बेहतरीन हुआ है.

बधाई आदरणीय सौरभ भईया इस प्रस्तुति पर.

Comment by Sushil Sarna on May 2, 2016 at 7:49pm

आदरणीय सौरभ सर
''जितनी भी तारीफ़ करूँ रुकतीं नहीं ज़ुबाँ
हर ग़ज़ल है आपकी नूर की एक ज़ू -ऐ-खाँ
इस गुदगुदाती सी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सर।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 2, 2016 at 7:48pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सौरभ पांडे जी!मुझे गज़ल की बारीकियों का ज्ञान तो नहीं है, मगर कुछ बातें ऐसी होती हैं जो दिल को छू जाती हैं और बहुत दिन तक दिल में हलचल मचाती रहती हैं!मसलन,

फूल भी बदतमीज़ होने लगे 
सोचती पोर ये, लजा जाये!

कौन इन्सान क्या पता ’सौरभ’
किस कहानी में नाम पा जाये !

Comment by Anuj on May 2, 2016 at 7:31pm

रात होंठों से नज़्म लिखती हो, 
कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ?

इसे पढ़ कर "एंटी ग़ज़ल" के दौर के जफ़र इकबाल के कुछ शेर याद आ गए .

आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये 
और मासूम-सा दिखा जाये

हासिले ग़ज़ल ! बहुत खूब !!

Comment by जयनित कुमार मेहता on May 2, 2016 at 6:47pm
अब ग़लती हो ही गई है तो कृपा कर क्षमा कर दीजिये!
आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ।
:-)

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