For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-नूर-अश्क आँखों से फिर बहा जाये,

२१२२/१२१२/२२ (११२)
.
अश्क आँखों से फिर बहा जाये,
अपना जाये, किसी का क्या जाये.
.
तुम अगर चश्म-ए-तर में आ जाओ,
झील में चाँद झिलमिला जाये.
 
.
ढ़लती उम्रों के मोजज़े हैं मियाँ
इक बुझा जाए, इक जला जाये.
.
याद माज़ी को कर के जी लूँगा, 
फिर जहाँ तक ये सिलसिला जाये.
.
ज़ह’न कहता है, कर ले सब्र ज़रा,
और दिल है कि बस मरा जाये.
.
गर्द हो .....तो..... उडो हवाओं में,
आसमां हो... तो फिर झुका जाये. ..... क्रमश:

.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

आ. Saurabh Pandey जी की ग़ज़ल "ग़ज़ल - फूल भी बदतमीज़ होने लगे" ने मुझे ये ग़ज़ल कहने के लिए प्रेरित किया है. ये ग़ज़ल उन्ही को समर्पित करता हूँ.

Views: 789

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2016 at 8:08am

शुक्रिया आ. सुनील जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2016 at 8:08am

शुक्रिया आ. समर सर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2016 at 8:07am

शुक्रिया आ. नादिर खान साहेब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2016 at 10:35pm
शुक्रिया अनुज जी
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2016 at 10:32pm
शुक्रिया आ. डॉ गोपाल नारायण जी
Comment by Sushil Sarna on May 6, 2016 at 6:36pm

वाह आदरणीय नीलेश जी वाह बहुत खूब अशआर कहे हैं आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Samar kabeer on May 6, 2016 at 6:25pm
जनाब निलेश'नूर'जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
Comment by नादिर ख़ान on May 6, 2016 at 6:11pm

ज़ह’न कहता है, कर ले सब्र ज़रा,
और दिल है कि बस मरा जाये. 

सही कहा सर दिल कब किसी की सुनता है (दिल तो आखिर दिल है न)
.

गर्द हो .....तो..... उडो हवाओं में, 
आसमां हो... तो फिर झुका जाये....वाह क्या उम्दा बात कही आदरणीय नीलेश जी, बड़प्पन तो झुकने में ही है|

Comment by Anuj on May 6, 2016 at 5:54pm

तुम अगर चश्म-ए-तर में आ जाओ, 
झील में चाँद झिलमिला जाये.
  

हाँ इसे कहते है ग़ज़ल का शेर !!

बेशकीमत, अनमोल !!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 6, 2016 at 3:52pm
सुभान अल्लाह --- बहुत खूब . सादर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service