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ग़रीबों की विरासत (लघुकथा) शेख़ शहज़ाद उस्मानी

नई सदी, विरासत और सत्ता के बीच कुछ मुद्दों पर बहस छिड़ गई थी। सत्ता विरासत से संतुष्ट और प्रसन्न थी, उसे विरासत में ही अपना भविष्य नज़र आ रहा था। नई सदी विरासत को बोझ समझ कर उसे समस्याओं का जनक मान रही थी। विरासत अपनी प्रासंगिकता और महत्व की पुष्टि कर रही थी।

"केवल विज्ञान की विरासत सदैव मेरे लिए सार्थक और लाभदायक रही है, बाक़ी सभी ने ढेर सारी समस्याएँ और दुविधायें हम पर थोपीं हैं। एक ही लकीर पीटते रहने से मौलिक नवीन सृजन बाधित हुआ है। लोग आलसी, निकम्मे पराधीन और आश्रित हो रहे हैं विरासतों की वज़ह से। " - नई सदी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा।

"मुझे तो नहीं लगता ऐसा कभी! "- सत्ता ने विरोध जताते हुए कहा- "साझा संस्कृति और साझा विरासत की वज़ह से ही आज राष्ट्र टिके हुए हैं, कहीं लोकतंत्र टिका हुआ है, कहीं राजशाही और कहीं तानाशाही! कहीं फ़िल्म जगत टिका हुआ है, कहीं शास्त्रीय संगीत! विरासत में मिली सत्ता की सफलता नहीं देखी क्या आपने?"

ये सब बातें सुनकर विरासत ने कहा- "बिलकुल सही कहा आपने। मेरी बदौलत ही राष्ट्र चमक रहे हैं, सभ्यता और संस्कृति सदैव विकासशील हैं, रोज़गार से लेकर पर्यटन तक, स्वाभिमान से लेकर प्रसिद्धि तक सब मेरी ही परिणति है!"

"बड़े लोगों की बड़ी-बड़ी बातें, बड़े इरादे, बड़े सपने! ग़रीब या मुफ़लिस क्या जाने, विरासत क्या होती है? साझा विरासत हो या ग़ैर-साझा, उसे विरासत में क्या मिलता है? मेरा अनुभव तो यही है कि समाज की मुख्य धारा से दूर रहकर ग़रीब वही और वहीं है, जैसा जहां था!" - निराश नई सदी ने कहा।

[मौलिक व अप्रकाशित].

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 27, 2016 at 5:41am
मेरी रचना पर समय देकर समीक्षात्मक टिप्पणी द्वारा प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब बशर भारतीय साहब।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 27, 2016 at 5:40am
रचना पर समय देकर अनुमोदन करने विचारों से अवगत कराने व प्रोत्साहन देने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी व आदरणीया नीता कसार जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 27, 2016 at 5:38am
महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत कर मार्गदर्शन प्रदान करने, रचना का अनुमोदन करने व प्रोत्साहन देने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी व आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी।
Comment by pratibha pande on May 26, 2016 at 7:24pm

ये कभी ख़त्म नहीं होने वाला विवाद है ,  अच्छा विषय लिया है आपने ,निर्वहन भी सफलता से किया है ,     हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको इस रचना पर आदरणीय उस्मानी जी   

Comment by Nita Kasar on May 26, 2016 at 3:01pm
विरासत को नही सहेज पायेंगे तो नयी पीढ़ी को क्या दिखायेंगें ।विरासत ही संपूर्ण राष्ट्र का आईना होती है।संदेशप्रद कथा के लिये बधाई आपको आद०शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।
Comment by बशर भारतीय on May 26, 2016 at 7:36am
एक अलग ही पहलू को उभारा है आपने बहुत बहुत बधाई इस लघुकथा के लिये
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 25, 2016 at 8:59pm
बहुत ही सार्थक , एक गम्भीर प्रस्तुति। विरासत एक धरोहर होती है , समय के साथ उसमें उत्तरोत्तर वृद्धि एवं संवर्धन करते रहना पड़ता है , भविष्य निर्माण में वह एक भूमिका का काम करती है। अपनी संस्कृति को छोड़ना समीकीं नहीं होता है क्योंकि वह बहुत से कारकों और कारणों से निर्मित और उन पर आधारित होती है , कभी कभी वे कारक और कारण हमें दिखाई भी नहीं देते हैं।
आपको इस खूबसूरत सोच और प्रस्तुति केलिए बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी , सादर।
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 25, 2016 at 8:25pm

वाह ! सत्ता,विरासत और नयी सदी सभी के तर्क अच्छे हैं. किन्तु नई सदी में अनुभव की कमी भी हो सकती है. सुंदर लघुकथा. बहुत-बहुत बधाई आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी साहब. सादर.

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 25, 2016 at 4:52pm
बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहब हौसला अफ़ज़ाई हेतु।
Comment by Samar kabeer on May 25, 2016 at 2:43pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत अच्छी लगी आपकी लघुकथा,बधाई स्वीकार करें ।

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