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रिश्ते खून और धर्म के या..............

रिश्ते खून और धर्म के या..............
सुबह  के ८ बज गए थे, बिस्तर  छोड़ने का मन नहीं था, सोचा आधा घण्टा और सो लू ,तभी  पत्नी ने आवाज लगाई ,सुनो  मन्सूर अंकल' आये है, मैं कसमसा कर बिस्तर से उठा, ये मन्सूर अंकल  न सुबह देखते है ना शाम और कभी-कभी तो रात को ११ -१२ बजे भी बेल  बजा  देते है, अभी पिछले माह रात को १२ बजे बेल बजी मैने घडी की और देखा ,फिर दरवाजे की और, मन आशंका से भर गया कोन होगा क्या हुआ होगा ये सोचते हुये दरवाजा खोला सामने मन्सूर अंकल थे बोले अरे रात में  तकलीफ दे रहा हूँ बात यह है की रात वाली ट्रैन से मेरी खाला आई है , बुजुर्ग है , और मेरी भी हालत ऐसी नहीं की इनकी मदद कर सकु। असल में अपनी मल्टी की लिफ्ट ख़राब है और इनका सामान नीचे  रखा है , बेटा  नीचे  से सामान उठा कर लाना है।  मैं झल्ला गया की मैं कोई हम्माल हूँ जो तीन  माले तक बजन ढो कर लाऊंगा ,मन में आया की इन्हे धक्के मार के भगा दूँ पर फिर इनके लड़के और मेरे दोस्त का ख्याल कर चुप हो गया।  तभी पत्नी बोली अरे अंकल आप परेशान क्यों होते है ये सामान उठा लायेगे और मैं खाला को चाय ,नाश्ता दे आती हूँ , दूर के सफर से आयी  है , आराम मिलेगा। वो बोले नहीं बेटी अभी तो सामान लाना है , खाला  तो यहाँ १५ दिन तक रुकेगी कल से रोज खातिरदारी करवायेगी। मैने  मन ही मन सोचा की परेशान करने को आप ही क्या काम थे जो खाला को भी बुला लिया , अब १५ दिनों तक इन्हे भी झेलना पड़ेगा।
 ऐसे अनेक किस्सों से मन्सूर  अंकल ने परेशान कर रखा था , आज क्या नई समस्या लेकर आये  होंगे ये सोचकर मैं बाहर आया  देखा मन्सूर  अंकल सोफे पर बैठे चाय ,बिस्किट का लुत्फ़ ले रहे थे, साथ ही मेरी बेटी जूही की किताब से उसे पोयम सीखा रहे थे मुझे देखते ही बोले अरे ८ बज गये अभी तक सो रहे थे जल्दी उठना सेहत के लिये अच्छा होता है ,जल्दी उठने की आदत डालो भाई,इस नसीहत के बाद बोले आज ऑफिस जाते समय मेरी ये दवा लेते आना , मेरे पास २ दिन की  दवाएं ही बची  है, साथ ही उन्होंने ५०० रूपये दवा की पर्ची के साथ दिये , मैंने रुपये लेने से इंकार किया लेकिन उन्होंने जबरन मेरे हाथ में थमा दिए।  पैसे, पर्ची दे कर चाय गुटक कर निकल गये।  मैंने पत्नी से कहा की आज मैं देर तक सोना चाहता था पर इस घर में मुझे ये आदमी चैन से नहीं रहने देगा ,ये ले आना , वो कर दो , मैं क्या इनका नौकर हूँ।  पत्नी ने कहा की ऑफिस जाते समय आप रास्ते से दवाइयाँ  ले लेना, इस से आपको कोन सा बोझ लगेगा, वो एक बुजुर्ग इंसान है , वो हमारे कितने मददगार हैं ,आप तो दिन भर ऑफिस में रहते हैं ,घर के छोटे मोटे कामो में मदद कौन करता हैं , जूही को स्कूल बस में बिठाना , लाना ,सब्जी लाना ,जरुरत पड़ने पर दूध का पैकेट लाना और कई बार मार्केट से मेरे साथ ऑटो में जा कर सामान लाने में मदद करते हैं और आप जरा से काम को बोझ  समझते हैं।   
मैंने कहा की हां मुझे बोझ नहीं लगेगा , उस दिन खाला का सामान तीन  माले तक उठा कर लाया मुझे बोझ नहीं लगा, रोज-रोज  फ्री की  चाय, नाश्ता ,खाना और कभी कभी जूही की चॉकलेट भी खा जाना मुझे बोझ नहीं लगता, फुरसत में है, फ्री का मिल जाता है, तो काम करते है, मतलब के लिए आते है, खाना खिलाना बंद कर दो, वो आना बंद कर देंगे ।वास्तव में मन्सूर  साहब की पत्नी का इंतकाल दस साल पहले हो गया था वे पास के फ्लैट में उनके बेटे इमरान  और बहु रुखसाना के साथ रहते थे , इनका १ साल का एक पोता था जिसका नाम मन्सूर  अंकल ने बड़े प्यार से अयान रखा था , इमरान और मैं  कॉलेज में भी एक साथ पड़ते थे  और नौकरी भी लगभग साथ साथ एक ही शहर में कर रहे थे।  दो साल पहले इमरान की कंपनी ने उसे लंदन भेज दिया , इमरान अपनी पत्नी और बच्चे के साथ लंदन चला गया , और जाते जाते मन्सूर  अंकल की जिम्मेदारी मुझे सौप  गया , कहा की में ३-४ साल में लौट  आऊंगा तब तक आप अब्बू का ख्याल रखना।  मन्सूर अंकल अयान के जाने से उदास रहते थे, और ज्यादा समय जूही के साथ बिताते थे , तब से हमेशा हमारे घर में ही जमे रहते थे.. आसपास के कई लोग इस पर ऐतराज करते थे की एक मुसलमान को घर में क्यों घुसाए रहते हो  , आसपास की महिलाएं भी अंकल के मुसलमान होने पर खुसर फुसर करती रहती थी ,मैंने  पत्नी को अनेको बार इस बारे में आगाह भी  किया लेकिन पत्नी ने इस पर कभी ध्यान नहीं दिया , वो उन्हें सिर्फ और सिर्फ अंकल मानती थी , ना हिन्दू ना मुसलमान और में उसके आगे कुछ बोल नहीं पाता  था।  जूही अपने हाथो से उन्हें चॉकलेट खिलाती और वो आराम से गटक जाते।  मैंने पत्नी से कहाँ की आपको मालूम  है ये चॉकलेट ५०-५० रुपये की आती है और ये उन्हें खिला  देती है. और वो भी खा जाते है,हद हो गई यार।  पत्नी बोली बच्चे और बूढ़े  एक समान होते है, क्या हो गया एक चॉकलेट खा भी ली तो , आप की  सोच बहुत घटिया है।
उस दिन जब में दवा की दूकान से दवा ले रहा था तो सामने लाला  हलवाई की दूकान पर गरम समोसे बनते देख ४ समोसे बंधवा लिए की आज चाय के पहले पति-पत्नी दोनों २-२ समोसे खाएंगे और घर जैसे ही पंहुचा देखा मन्सूर  अंकल पसरे हुए है , मुझे देखते ही बोले आज कुछ जल्दी आ गये , मेरी दवा लाये की नहीं , मैंने  उनकी और दवाई बड़ाई तो बोले बहुत अच्छी खुशबु  आ रही है, और क्या है? निकालो , मजबूरन मैंने समोसे का पैकेट पत्नी की और बढ़ाया , पत्नी ने तुरंत तीन  प्लेटो में समोसे चटनी के साथ सर्व किये। समोसे खा कर अंकल ने कहा की बहुत उम्दा  स्वाद है, क्या और है ? पत्नी ने कहा हां हां अंकल हैं ना , और तुरंत समोसा   अंकल के आगे बढ़ाया  और मेरे सामने अंकल ने चौथा और आखरी समोसा गटक कर पानी पी  कर घर चले गए. मैंने कहा की यार बेशर्मी कि हद हो गई में अपने लिए समोसे लाया था और मजे किसी और ने लिए, फिर बेग से जूही को चॉकलेट देते हुए कहाँ की ये चॉकलेट आपके लिए है किसी फालतू के लिए नहीं।  जूही बोली पापा दादू फ़ालतू नहीं है वो मुझे घुमाते है, मेरे संग नाचते है, मुझे लिखना पढना सिखाते है., मैंने डॉट  कर कहाँ चुप रहो अगर अब तुमने ये चॉकलेट खिलाया तो उन्हें यहाँ घुसने नहीं दूंगा जूही मेरी डॉट  से डर  कर चुप हो गई। 
इसी तरह की अनेक समस्या का सामना में कर रहा था। वह माह दिसंबर का दिन  था, भयानक ठण्ड गिर रही थी, लगता था इस साल ठण्ड  सारे रिकॉर्ड तोड़ देगी , मैं भी ऑफिस से जल्दी घर आ कर रजाई में दुबक जाता। वो दिन शनिवार का था शाम को हमने डिनर जल्दी कर हीटर से कमरा  गर्म कर रजाई लपेट कर टीवी का आनंद ले रहे थे मुझे नींद के झोंके आने लगे , मैंने पत्नी से कहाँ की कल रविवार है , मैं देर से  उठुगा ,  मुझे डिस्टर्ब  मत करना , मैं गहरी नींद में था रात को अनायास मोबाइल की घंटी बजी मैंने  सुन कर भी अनसुना कर दिया। पत्नी ने हिला कर कहा की अजी तुम्हरा मोबाइल कब से बज रहा है , उठाओ।  मैंने मोबाइल उठाया देखा मन्सूर  अंकल कॉल कर रहे है , मैंने सोचा आज इस ठण्ड में ना जाने कहा भेजेंगे , मैंने मोबाइल को स्विच ऑफ कर दिया और पत्नी के पूछने पर झूट कह दिया की कोई रॉंग नंबर था, मेरी पत्नी भी उस दिन सुबह ७ बजे उठी और धूप  का आनंद लेने के लिए बालकनी में चली गई।  बालकनी से मन्सूर  अंकल के फ्लैट की और  देखा , की अरे आज अभी तक अंकल उठे नहीं, वो तो सुबह ५ बजे मॉर्निंग वॉक  पर चले जाते है , आज तो दरवाजे पर अखबार और दूध का पैकेट पड़ा हुआ है, क्या बात है? तुरंत पत्नी ने मुझे बताया और उनके फ्लैट पर जा कर पता लगाने को कहाँ , मैंने  कहा तुम खुद ही चले जाओ में अभी १ घंटा और सोउंगा।  पत्नी उनके फ्लैट तक गई और तुरंत घबराई सी लोटी , रजाई खींचते हुए बोली की जल्दी चलो अंकल दरवाजा नहीं खोल रहे है।  मैं उनींदा सा उनके फ्लैट तक पहुंचा तब तक ४-५ लोग और वह जमा हो गए थे, सबने बेल बजा कर, दरवाजा  खटखटा कर, मोबाइल से कॉल कर के उन्हें उठाने का प्रयास किया लेकिन कोई आवाज  नहीं आने पर तुरंत सिक्योरिटी को बुलाया , लॉक तोड़ कर घर मैं प्रवेश किया, देखा , अंकल बेसुध  पड़े थे , पड़ोस के श्रीवास्तव जी ने नाक के सामने हाथ रख कर देखा और कहा की मन्सूर जी नहीं रहे , पत्नी ने कहा की ऐसा नहीं हो सकता , आप डॉक्टर को बुलाए , मैंने  तुरंत डॉक्टर को फ़ोन कर बुलाया, डॉक्टर ने देखा और बताया की इनका लगभग १ घंटे पहले इंतकाल हो गया है , अगर पहले कोई इन्हे अस्पताल तक ला पाता तो शायद बच जाते , आसपास के लोगो ने कहा की इनके साथ कोई भी नहीं रहता , ये तो अकेले रहते है इन्हे कौन  अस्पताल लाता, बेचारे किसी को मदद के लिए खबर भी नहीं कर पाये। पड़ोस के चौधरी जी बोले हमने कई बार कहा था, की मन्सूर  जी आप किसी मुस्लिम  मोहल्ले में रहो तो जरुरत पड़ने पर आपके जाति , समाज के लोग मदद कर सके , पर इन्हे तो यही अच्छा लगता था, ऐसा कह सब अपने अपने घर की और चले गए , मेने अपने मोबाइल में, उनके कॉल का समय देखा , वो लगभग इंतकाल के ४ घंटे  पहले का था, मुझे कमरे में अंकल के पास १ डायरी नजर आई जिसमे वो कुछ लिखते रहते थे , मेने डायरी के पन्ने पलटे, १ पेज पर मेरा नाम लिखा हुआ था , की बेटा इमरान के जाने के बाद मैं तुम मैं ,तुम्हारी पत्नी में और बच्ची में, इमरान , रुखसाना, और अयान को देखता हूँ।  मैं जब भी तुम्हारे घर होता हूँ , खाता हूँ , बच्ची के साथ खेलता हूँ, मुझे उसमे इमरान ,रुखसाना और अयान की खुशबु आती है।  बेटा यदि मुझे कुछ हो जाए तो इमरान का इंतजार मत करना तुम्ही मुझे  सुपुर्दे खाक  कर देना।  मैं तुम में अपना परिवार देखता हूँ और उसी हक़ से तुम्हे नसीहत देता हूँ , तुम्हारे घर के बुजुर्ग की तरह चला आता हूँ. ये पड  कर में समझ नहीं पा रहा था , की क्या करू।  रोऊँ  ,चीखु  या अपने आप को सजा दूँ. मैंने इमरान को इंतकाल की खबर दी।  और मज्जिद के मोलवी को खबर दे कर कुछ मुस्लिम  भाइयो को भी बुलवा लिया। ये इंतजाम कर जब मैं घर लोटा , तो बेटी जूही ने पूछा की पापा आज दादू क्यों नहीं आये , में कुछ नहीं बोला  तो वो बोली की बताओ ना , मैं वादा करती हूँ , मैं उन्हें कभी चॉकलेट नहीं दूंगी , आप उन्हें घर में घुसने से रोकेंगे तो नहीं ? और में अपनी बच्ची से नजर भी नहीं मिला पा रहा था।
अगले दिन इमरान फ्लाइट से भारत आ गया था , जनाजा उठाते ही , मैं फूट-फूट  कर रोने लगा , में अपराध बोथ से गड़ा  जा रहा था , मेरे आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.  पड़ोस के लोग मुझसे कह रहे थे , तुम्हरा बाप नहीं मरा है , तुम तो इमरान से भी ज्यादा शोक मना रहे हो. ना तुम्हारे धर्म का हैं , ना रिश्तेदार , उसके लिए इतना दुख क्यों ? मैं उनकी कब्र पर मिटटी डाल  रहा था और सोच रहा था की ,रिश्ते खून या धर्म के ही होते है या कोई और भी? ये सोचते हुए मैं घर की और लोटा , ना जाने क्या क्या मैं अंकल के बारे में  कहता रहा और वो एक फ़रिश्ते के मानिंद मोहबत का रिश्ता निभाते गए।  कल जब वो नहीं होंगे और वो सारे काम मुझे करने होंगे जो वो करते थे, तब एक  बुजुर्ग की  अहिमयत का एहसास होगा।

मौलिक और अप्रकाशित

राजेन्द्र कुमार दुबे

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Comment by Rajendra kumar dubey on June 2, 2016 at 11:15pm
आदरणीय कल्पना जी आपके प्रोत्साहन से मुझे और ऊर्जा मिली है आपको हृदय से धन्यवाद।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 2, 2016 at 6:01pm

पढ़ती गयी और बस पढ़ती चली गयी | रिश्तो की पहचान हो जाये वक़्त पर , तो खुशियाँ दुगनी हो जाती है | प्यार का बंधन अनमोल होता है | बहुत ही सुंदर और मूल्यवान बात आपने कही है आदरणीय | लेखन भी सुंदर हुआ है | बधाई स्वीकारें |

Comment by Rajendra kumar dubey on June 2, 2016 at 6:33am
आदरणीय कान्ता राय जी प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद
Comment by kanta roy on June 1, 2016 at 9:31pm
पढ़ते हुए आँखें नम हो आई । संवेदनाओं को बहुत खूब बाँधा है आपने यहाँ । मानवीय सम्बंधों में जाति - पाति से इतर भावनात्मक बंधन ही सबसे अधिक मुल्यवान होती है को संदर्भित करती बेहद उम्दा कहानी लेखन हुआ है आपका आदरणीय राजेन्द्र जी । ढेरों बधाई प्रेषित है । सादर
Comment by Rajendra kumar dubey on May 30, 2016 at 3:07pm
सम्माननीय उस्मानी जी आपकी सराहना के लिए हृदय से धन्यवाद।
Comment by Rajendra kumar dubey on May 30, 2016 at 2:57pm
आदरणीय राहीला जी आपकी हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 29, 2016 at 6:24pm
वाह... समसामयिक परिदृश्य की नितांत आवश्यकता को समझते हुए सार्थक साहित्यिक कर्म को चरितार्थ करती बेहतरीन भावपूर्ण प्रेरक रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय राजेन्द्र कुमार दुबे जी। यही सच्चा हिन्दुस्तान है देश के गली मोहल्ले से लेकर महानगरों तक के ऐसे कई व्यक्त क़िस्सों का प्रतिनिधित्व करती इस प्रवाहमय कहानी में पाठक को बांधे रखने के सभी तत्व तथ्य व कथ्य के साथ मौजूद हैं।
Comment by Rahila on May 29, 2016 at 3:44pm
आदरणीय दुबे सर जी! बहुत बेहतरीन रचना प्रस्तुत की आपने बेहद सधी हुई लेखनी,बहुत उम्दा लेखन उसपर भावनाओं से ओतप्रोत कहानी, बहुत बधाई के काबिल है । सादर प्रणाम
Comment by Rajendra kumar dubey on May 29, 2016 at 2:18pm
आदरणीय बृजेश जी आपने मुझे और लिखने का हौसला दिया है धन्यवाद।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 29, 2016 at 1:49pm

बहुत ही सुन्दर एवं मार्मिक भावों का समावेश किया है आपने आदरणीय....अंदर तक छू गई....पहले तो सोचा इतनी लम्बी रचना कौन पढ़े लेकिन जब पढ़ना शुरू किया तो पढता ही चला गया.....बेहतरीन 

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