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दिल-ऐ-बिस्मिल में ...

दिल-ऐ-बिस्मिल में ...

कुछ भी तो नहीं बदला
नसीम-ऐ-सहर
आज भी मेरे अहसासों को
कुरेद जाती है
मेरी पलकों पे
तेरी नमनाक नज़रों की
नमी छोड़ जाती है
कहाँ बदलता है कुछ
किसी के जाने से
बस दर्द मिलता है
गुजरे हुए लम्हात के मरकदों पे
यादों के चराग़ जलाने में
और लगता है वक्त
लम्हा लम्हा मिली
अनगिनित खराशों को
जिस्म-ओ-ज़हन से मिटाने में
अपनी ज़फा से तुमने
वफ़ा के पैरहन को
तार तार कर दिया
आरज़ू के हर अब्र को
शर्मसार कर दिया
स्याह रात में
तारे तो आज भी टूटते हैं
मगर दिल में अब उनसे
किसी मन्नत की ख़्वाहिश नहीं उठती
अब शब-ए-हिज़्राँ
करवटों में गुजरती है
यादों के जज़ीरों पर
कोई आशना सी परछाईं
रक़्स करती है
चराग़-ए-शरर
तारीकियों से बात करती है
हर सू इक चुप सी
महसूस होती है
अब दिल-ए-बिस्मिल में भी
कोई शोर नहीं होता
हर अहद दम तोड़ देती है
सायों का जिस्मों पर जोर नहीं होता
उम्र गुज़र जाती है
किसी के करीब जाने में
मगर जाने वाले पे
किसी का जोर नहीं होता

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on June 6, 2016 at 12:29pm

आ.   Rahila जी  ग़ज़ल की प्रस्तुति पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का  शुक्रिया। नेट व्यवधान के कारण आभार व्यक्त न कर पाया, क्षमा चाहूंगा। 

Comment by Rahila on June 4, 2016 at 11:11pm
बहुत खूबसूरत रचना आदरणीय सर जी! खूब बधाई आपको । सादर नमन
Comment by Sushil Sarna on June 4, 2016 at 4:25pm

आदरणीय Pawan Kumar  जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय सराहना का दिल से आभार। 

Comment by Pawan Kumar on June 4, 2016 at 3:33pm

दिल.ऐ.बिस्मिल में .....
आदरणीय, सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई

Comment by Sushil Sarna on June 4, 2016 at 1:00pm

आदरणीया प्रतिभा जी प्रस्तुति में निहित भावों को मान देने का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on June 4, 2016 at 12:59pm

आदरणीय राजेंद्र कुमार दूबे जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय सराहना का दिल से आभार। 

Comment by pratibha pande on June 4, 2016 at 9:30am

तारे तो आज भी टूटते हैं 
मगर दिल में अब उनसे 
किसी मन्नत की ख़्वाहिश नहीं उठती ....बहुत खूबसूरत शब्दों में रची बसी  महीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुशील सरना जी 

Comment by Rajendra kumar dubey on June 4, 2016 at 7:16am
स्याह रात मैं तारे तो आज भी टूटते है
मगर दिल में अब उनसे किसी मन्नत की ख्वाहिश नहीं उठती।
बहुत खूब । पर हमारी यह आरजू है की आप एसी ही गजलो से हमें रूबरू कराते रहे।आदरणीय सरना जी बधाई स्वीकारे।

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