बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
ग़ज़ल
सड़क पर बजबजाते चीखते नारों से क्या होगा
हवा में फुस्स हो जायें जो, गुब्बारों से क्या होगा ?
लडाई है बहुत बाकी बहुत कुछ कर गुजरना है
नही है हौसला दिल में तो नक्कारों से क्या होगा ?
जिन्हें हमने अता की है, हकूमत देश की यारों
उन्ही में बदगुमानी है तो उद्गारों से क्या होगा ?
पड़े है एक कोने में, जिन्हें परचम उठाना है
चलो उनको जगाओ सिर्फ धिक्कारों से क्या होगा?
हमें मिलकर उगानी है, जवानों की नयी फसलें
पुराने बुझ चुके बदहाल मक्कारों से क्या होगा ?
करो कुछ तो गजब ऐसा कि जज्बा हो नया पैदा
थिरकते पाँव की पायल की झंकारों से क्या होगा ?
अगर होना है अपने आप होगा आँख का जादू
यहाँ ‘गोपाल’ केवल मन्त्र अभिचारों से क्या होगा ?
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
वाह बहुत ही खूबसूरत भावपूर्ण ग़ज़ल
मोहतरम जनाब गोपाल नारायण साहिब ,सन्देश देती अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
क्या बात है ! आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , गज़ल लाजवाब हुई है , दिल से बधाइयाँ आपको ।
हमें मिलकर उगानी है, जवानों की नयी फसलें
पुराने बुझ चुके बदहाल मक्कारों से क्या होगा ? ---- बहुत खूब !
आदरणीय गोपाल सर ..फर्ज के प्रति आगाह करती , पुराणी व्यबस्थाओं के बदलने की बात करती , और बर्तमान परिदृश्य से साक्षात्कार करती इस शानदार रचना के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को आदरणीय , सादर |
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