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चूम आये हम गुलाब-ग़ज़ल

2122 2122 2122 212(1)
2122 2122 2122 212

ज़िद थी उनको चूमने की, चूम आये हम गुलाब।
पाक वो भी रह गये, औ हो न पाये हम ख़राब।।

थी ये ख़्वाहिश रात भर आगोश में उनके रहें।
चाँदनी बिखरी रही, शब भर रहा छत पर शबाब।।

कौन कहता जिस्म का मिलना ही पाना है मियाँ।
कौन मीरा का किशन था, पा गया मैं भी जवाब।।

धड़कनों में उसकी सरगम, और ख़्शबू साँस में।
देखिये चेहरे पे मेरे कैसा उसका है रुआब।।

प्यास थी इक जो महल में ख़त्म होती थी नहीं।
घूमने निकले जो बाहर तो मिटी जाकर जनाब।।

मौलिक-अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 27, 2016 at 9:02am
आदरणीय रक्ताले सर ग़ज़ल पर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार। सुझाव समुचित है, संशोधन करूँगा।

सादर प्रणाम
Comment by Harash Mahajan on June 27, 2016 at 8:29am
आ0 पंकज जी अति सूंदर !! दाद क़बूल कीजियेगा ।।
Comment by Ashok Kumar Raktale on June 27, 2016 at 8:17am

आदरणीय पंकज मिश्र जी सादर, सुन्दर गजल कही है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. गजल के विषय में बहुत तो नहीं जानता किन्तु एक मिसरे पर मन में विचार आया है //धड़कनों में उसकी सरगम, उसकी ख़्शबू साँस में।//......यहाँ दूसरी बार "उसकी" शब्द न रख कर "और " रखा जाना क्या ठीक नहीं होता ? सादर.

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 26, 2016 at 9:49pm
आदरणीय शिज़्ज़ू शकूर सर सादर धन्यवाद

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 26, 2016 at 8:36pm
अच्छी ग़ज़ल है आ. पंकज मिश्रा जी

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