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मुझे पूर्ण कर जाएगा.....

मुझे पूर्ण कर जाएगा.....

न जाने कितनी बार
मैं स्वयं को
दर्पण मेंं निहारती हूँ
बार बार
इस अास पर
खुद को संवारती हूँ
कि शायद
अाज कोई मुझे
अपना कह के पुकरेगा !

मेरी इस सोच से
मेरा विश्वास
डगमगाता क्यूँ है ?
क्या मैं दैहिक सोन्दर्य से
अपूर्ण हूँ ?
क्या मेरा वर्ण बोध
मे्रे भाव बोध के अागे बौना है ?

फिर स्वयं के प्रश्न का उत्तर
अपने प्रतिबिंब से पूछ लेती हूँ
श्यामल वर्ण मुस्कुराता है
लाज़ की रणनीति अपनाता है
अधर रक्ताभ हो जाते हैं
नेत्र थोड़े लजाते हैं
मुझे मेरा उत्तर
मिल् जाता है
भौतिक देह मेंं वो सब है
जिस चाहत से कोई
देह अपनाता है

दैहिक समर्पण तो
पूर्ण हो जाता है
फिर भी क्यूँ मन मेंं
भटकन शेष रहती है
देह को छोड़ मन
उस अव्यक्त प्रेम के बिंदु तक
विचरण कर
खाली हाथ लौट अाता है
इच्छाएं
अनंकुरित ही रह जाती हैं
अात्मिक अांखें किसी रेगिस्तान सी
भावशून्य हो जाती हैं
अाखिर किस कस्तूरी गंध की तृषा लिए
मन
गहन कंदराओं मेंं
जीवन के अंतिम बिंदु तक
भटकता है ?

जाने किस पल के अवगुंठन से
कोई अजनबी अाएगा
अपना बन जाएगा
अंतस मेंं समा जाएगा
वर्णाकर्षण की भौतिकता से दूर
प्रेमाकर्षण के अंतिम बिंदु तक
मुझे पूर्ण कर जाएगा

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on July 12, 2016 at 3:59pm

अादरणीय  shree suneel  जी प्रस्तुति मेंं निहित भावों को समर्थन देती अापकी अात्मीय प्रशंसा का हार्दिक अाभार। 

Comment by shree suneel on July 11, 2016 at 8:25pm
वर्ण और बनावट से इतर प्रेम हीं तो सत्य है.. मूल है.. नायिका की इस आकांक्षा को शाब्दिक करती
इस सुन्दर रचना के लिए बधाई आपको आदरणीय सुशील सरना सर जी. सादर
Comment by Sushil Sarna on July 7, 2016 at 8:31pm

अादरणीय रामबली गुप्ता जी अाप जैसे काव्य मर्मज्ञ से रचना के भावों को मिली अात्मीय प्रशंसा से सृजन धन्य हुअा। अापका हार्दिक अाभार। 

Comment by रामबली गुप्ता on July 7, 2016 at 5:28pm
वाह वाह आद0 सुशील सरना जी जब भी आपकी रचनाएँ पढता हूँ हर बार कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है। बहुत ही सुंदर हृदय से बधाई स्वीकार करें।बिम्ब लाजवाब भाव पक्ष चरम को प्राप्त करता हुआ। पुनरपि बधाई
Comment by Sushil Sarna on July 6, 2016 at 10:25pm

अादरणीय गिरिराज भाई साहिब प्रस्तुति मेंं निहित भावों को समर्थन देती अापकी अात्मीय प्रशंसा का हार्दिक अाभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 6, 2016 at 8:30pm

आदरनीय सुशील भाई , साँवले पन को लेकर मन मे उपजते उहापोह का बहुत सुन्दर वर्णन किया आपने , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Sushil Sarna on July 5, 2016 at 4:56pm

अादरणीया राहिला जी प्रस्तुति के गहन भावों को अात्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया। 

Comment by Rahila on July 5, 2016 at 12:37pm
वाह... वाह...!,एक साँवली सी लड़की की खूब मनोदशा समझी आपने।बहुत सुंदर चित्रण।खूब बधाई आदरणीय सर जी! सादर

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