मुझे पूर्ण कर जाएगा.....
न जाने कितनी बार
मैं स्वयं को
दर्पण मेंं निहारती हूँ
बार बार
इस अास पर
खुद को संवारती हूँ
कि शायद
अाज कोई मुझे
अपना कह के पुकरेगा !
मेरी इस सोच से
मेरा विश्वास
डगमगाता क्यूँ है ?
क्या मैं दैहिक सोन्दर्य से
अपूर्ण हूँ ?
क्या मेरा वर्ण बोध
मे्रे भाव बोध के अागे बौना है ?
फिर स्वयं के प्रश्न का उत्तर
अपने प्रतिबिंब से पूछ लेती हूँ
श्यामल वर्ण मुस्कुराता है
लाज़ की रणनीति अपनाता है
अधर रक्ताभ हो जाते हैं
नेत्र थोड़े लजाते हैं
मुझे मेरा उत्तर
मिल् जाता है
भौतिक देह मेंं वो सब है
जिस चाहत से कोई
देह अपनाता है
दैहिक समर्पण तो
पूर्ण हो जाता है
फिर भी क्यूँ मन मेंं
भटकन शेष रहती है
देह को छोड़ मन
उस अव्यक्त प्रेम के बिंदु तक
विचरण कर
खाली हाथ लौट अाता है
इच्छाएं
अनंकुरित ही रह जाती हैं
अात्मिक अांखें किसी रेगिस्तान सी
भावशून्य हो जाती हैं
अाखिर किस कस्तूरी गंध की तृषा लिए
मन
गहन कंदराओं मेंं
जीवन के अंतिम बिंदु तक
भटकता है ?
जाने किस पल के अवगुंठन से
कोई अजनबी अाएगा
अपना बन जाएगा
अंतस मेंं समा जाएगा
वर्णाकर्षण की भौतिकता से दूर
प्रेमाकर्षण के अंतिम बिंदु तक
मुझे पूर्ण कर जाएगा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
अादरणीय shree suneel जी प्रस्तुति मेंं निहित भावों को समर्थन देती अापकी अात्मीय प्रशंसा का हार्दिक अाभार।
अादरणीय रामबली गुप्ता जी अाप जैसे काव्य मर्मज्ञ से रचना के भावों को मिली अात्मीय प्रशंसा से सृजन धन्य हुअा। अापका हार्दिक अाभार।
अादरणीय गिरिराज भाई साहिब प्रस्तुति मेंं निहित भावों को समर्थन देती अापकी अात्मीय प्रशंसा का हार्दिक अाभार।
आदरनीय सुशील भाई , साँवले पन को लेकर मन मे उपजते उहापोह का बहुत सुन्दर वर्णन किया आपने , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
अादरणीया राहिला जी प्रस्तुति के गहन भावों को अात्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया।
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