For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चलो बंजारा बनें-ग़ज़ल

2122 2122 1222 212

कैद हो रहने से बेहतर, चलो बंजारा बनें।
घुट के यूँ जीने से बेहतर, चलो आवारा बनें।।

देख पैसे की हवस हमको है ले आई कहाँ।
चल के जंगल में रहें आदमी दोबारा बनें।।

अपनी दुनिया में ही मशरूफ हैं लायक तो सभी।
चल मुहल्ले की उदासी हरें नाकारा बनें।।

पूछता कोई नहीं प्यासे हैं कुछ बूढ़े शज़र।
स्नेह बरसाए जो उन पर वही फव्वारा बनें।।

डोर रिश्तों की नहीं दिखती है अँधेरा घना।
हम ही दीपक से जलें रात में उजियारा बनें।

मौलिक अप्रकाशित

Views: 600

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 6, 2016 at 11:13pm
आदरणीय गिरिराज सर,सादर प्रणाम।

1. अरुजानुरूप बह्र है या नहीं, पर गुनगुनाने में बहुत मासूम लग रही थी सो लिख दिया।
2. अँधेरा में टाइपिंग में गल्ती हुई है-अन्धेरा पढ़ा जाए।

सादर आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 6, 2016 at 11:10pm
आदरणीय रवि सर सादर आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 6, 2016 at 8:42pm

आदरणीय पंकज भाई , गज़ल अच्छी हुई है , भाव अच्छे हैं हार्दिक बधाइयाँ ।

दो बात कहनी है -- 1 - अरूज के अनुसार ये बहर सही है नही मै नही जानता , शंका है

अगर ये बहर सही भी है तो -

2-  अँधेरा को आप 222 लिये हैं  , इसे 122 मे बान्धना चाहिये  ( अंतिम शे र का उला देखें )

Comment by Ravi Shukla on July 6, 2016 at 12:17pm

आदरणीय पंकज जी इस गजल केे भाव अच्‍छे लगेे ब‍धाई स्‍वीकार करें । 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 6, 2016 at 11:36am
आदरणीय महेंद्र जी बहुत बहुत आभार
Comment by Mahendra Kumar on July 6, 2016 at 11:26am
आदरणीय पंकज जी, बहुत ही अच्छी ग़ज़ल लिखी है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें, सादर!
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 5, 2016 at 10:01pm
आदरणीय सुशील सरन सर बहुत बहुत आभार।
Comment by Sushil Sarna on July 5, 2016 at 8:08pm

कैद हो रहने से बेहतर, चलो बंजारा बनें।
घुट के यूँ जीने से बेहतर, चलो आवारा बनें।।

देख पैसे की हवस हमको है ले आई कहाँ।
चल के जंगल में रहें आदमी दोबारा बनें।।

वाह अादरणीय ग़ज़ब के अहसास पिरोये हैं अपने अदरणीय इस दिलकश ग़ज़ल की प्रस्तुति मेंं। हार्दिक बधाई सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
35 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
39 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
59 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
yesterday
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service