दो शब्द चित्र
1- दरकिनार हुए... अनुभव, योग्यता कार्य-कुशलता, कर्तव्य-परायणता, मधुरता, चाल-चलन, चरित्र ध्वस्त हुई.... न्याय प्रणाली हावी हुई.... पैरवी और चापलूसी आकलन का पैमाना बनी जाति और मुझे समीक्षा करनी पड़ी स्वयं के आरक्षण विरोधी होने पर. |
2- हर्ष व कष्ट मिश्रित वो नौ माह तत्पश्चात बिटिया का आगमन गलियारे के बाहर परिजनों की आवाज उफ्फ.. फिर बेटी ! अथाह वेदना.... प्रसव पीड़ा कुछ भी न थी. (मौलिक एवं अप्रकाशित) |
Comment
दो गंभीर मुद्दे। जाती के आधार पर योग्यता का मूल्यांकन सर्वथा अनुचित। फिर भी जाती के आधार आज भी प्रतिभा परखी जाती है।
प्रसव पीड़ा
कुछ भी न थी.
यह पंक्ति सब कुछ बयान कराती है।
आदरणीय बागी जी सादर नमस्कार, देश की दो गंभीर समस्याओं के बहुत सटीक शब्द चित्र खींचें हैं आपने. दोनों पर ही देश समाज को अपनी समझ बढाने एवं पुनर विचार की आवश्यकता है. सादर.
आत्म-मंथन के शब्द चित्र पूरे समाज को झकझोर रहे हैं...हार्दिक बधाई आदरणीय गनेश जी बागीजी.....सादर
हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी बागी जी! बहुत शानदार रचनायें!
आदरणीय समर साहब, काफ़ी व्यस्तता के मध्य कुछ भाव आ गए फलस्वरूप कविता स्वरुप ले सकी, आपको कविता पसंद आयी यह जानकार मन मुग्ध है, बहुत बहुत आभार.
आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, रचना आपको अच्छी लगी लेखन कर्म सार्थक हुआ, बहुत बहुत आभार.
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