For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - दिन ढलते ही रात को आते देख रहा हूँ

बह्र : मात्रिक

दिन ढलते ही रात को आते देख रहा हूँ
शहर से तुम को अपने जाते देख रहा हूँ

धीरे धीरे दिल ये मेरा डूब रहा है
दूर कहीं क़श्ती को जाते देख रहा हूँ

साहिल से मौजों का मिलना जाने कब हो
लहरों से लहरें टकराते देख रहा हूँ

शायद देखो मुड़ के मुझको जाते लेकिन
मायूसी आँखों में छाते देख रहा हूँ

देख रहा हूँ गुमसुम गुमसुम बैठे तुम को
तुम को ही आवाज़ लगाते देख रहा हूँ

चुपके चुपके बैठे बैठे अश्क़ बहाते
दिलवालों को दर्द छुपाते देख रहा हूँ

एक मुहब्बत तोड़ रही है फिर अपना दम
फूल किताबों में मुरझाते देख रहा हूँ

मत घबराना, वो लौटेंगे, अच्छा होगा
क्या क्या दुनिया को समझाते देख रहा हूँ

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 545

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on July 14, 2016 at 11:32am
हार्दिक आभार, आदरणीय अशोक सर!
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 13, 2016 at 10:41pm

एक मुहब्बत तोड़ रही है फिर अपना दम
फूल किताबों में मुरझाते देख रहा हूँ.......वाह !

आदरणीय महेंद्र कुमार जी सादर बहुत खूबसूरत गजल कही है, सभी अशआर एक से बढकर एक कहे हैं. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on July 13, 2016 at 8:33am

आदरणीय जयनित भाई, आपके सुझाव और ग़ज़ल को पसंद करने का हार्दिक आभार!

Comment by जयनित कुमार मेहता on July 12, 2016 at 6:07pm
उम्दा ग़ज़ल हुई है, आदरणीय महेंद्र जी।

मतले का सानी मिसरे में शब्दों का क्रम मुझे थोड़ा खटक रहा है। कैसा हो अगर उसे यूँ कर लें?-

"शहर से अपने तुमको जाते देख रहा हूँ"
Comment by Mahendra Kumar on July 12, 2016 at 11:52am
हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज जी, सादर!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2016 at 10:38am

आदरणीय महेन्द्र भाई , बहुत अच्छी गज़ल हुई है , सभी अशआर  अच्छे हुये हैं , दिल से बधाइयाँ आपको ।

Comment by Mahendra Kumar on July 12, 2016 at 7:54am
आदरणीय श्री सुनील जी, सराहना के लिए हार्दिक आभार!
Comment by shree suneel on July 11, 2016 at 9:55pm
बहुत हीं उम्दा ग़ज़ल... व्वाहह! सारे अशआर ख़ूबसूरत हैं.
दिल से दाद हाजिर है आदरणीय महेंद्र जी. क्या कहने!
Comment by Mahendra Kumar on July 11, 2016 at 5:46pm
आदाब आदरणीय समर कबीर सर! ग़ज़ल आपको पसंद आयी इसके लिए बहुत-बहुत आभार, सादर!
Comment by Samar kabeer on July 11, 2016 at 12:02pm
जनाब महेंद्र कुमार साहिब आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,सभी अशआर बेहतर हुए हैं किसी एक की क्या बात की जाये,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"ग़ज़ल  *****  इशारा भी  किसी को कारगर है  किसी से गुफ्तगू भी  बे असर…"
3 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों की प्रशंसा व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
6 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"लोग समझते शांति की, ये रचता बुनियाद।लेकिन बचती राख ही, सदा युद्ध के बाद।८।.....वाह ! यही सच्चाई है.…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"दोहे******करता युद्ध विनाश है, सदा छीन सुख चैनजहाँ शांति नित प्रेम से, कटते हैं दिन-रैन।१।*तोपों…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"स्वागतम्"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"अनुज बृजेश , आपका चुनाव अच्छा है , वैसे चुनने का अधिकार  तुम्हारा ही है , फिर भी आपके चुनाव से…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"एक अँधेरा लाख सितारे एक निराशा लाख सहारे....इंदीवर साहब का लिखा हुआ ये गीत मेरा पसंदीदा है...और…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"//मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है// मगर.. मलाई अपने आप कभी दूध से अलग नहीं होती, जैसे…"
Friday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही…"
Thursday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने सादर "
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service