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आदरणीय सतविन्द्र भाई , सुन्दर दोहावली के लिये आओअको हार्दिक बधाइयाँ ।
ईर्ष्या व बुरी भावना, -- सही है , लेकिन ऐसा करें तो ? मन की हर दुर्भावना , रखती है भयभीत , सोच लीजियेगा , ज़रूरी नही है ।
आदरणीय सतविन्द्र जी, आपका प्रयास रंग ला रहा है. आदरणीय अशोक जी के सुझाव पर आपने तुरत कार्यवाही की है, अतः हमें दोहे संयत हुए मिले हैं. वैसे भावों को शब्दों में पिरोने का अभ्यास अभी और प्रयास मांगता है. शुभेच्छाएँ
सुंदर सुधार किया है भाई सतविन्द्र कुमार जी. सादर.
आदरणीय सतविन्द्र जी, आपका प्रयास रंग ला रहा है. आदरणीय अशोक जी के सुझाव पर आपने तुरत कार्यवाही की है, अतः हमें दोहे संयत हुए मिले हैं. वैसे भावों को शब्दों में पिरोने का अभ्यास अभी और प्रयास मांगता है. शुभेच्छाएँ
आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी सादर, बहुत सुंदर दोहे रचे हैं.सतत प्रयास से और भी निखार आयेगा. इस सुंदर प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.
प्रेम-प्रीत की रीत से,जग को लेते जीत
ईर्ष्या-द्वेष बुरी भावना, रखती है भयभीत।.......तृतीय चरण जांच लें.
उसपे ज्यादा हो गया,हम तो हैं कंगाल
बैठे खाली सोचते,हों क्यों मालामाल।।.........इस दोहे के कथ्य में अधूरापन खल रहा है.
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