बह्र : २२ २२ २२ २
जल्दी में क्या सीखोगे
सब आहिस्ता सीखोगे
एक पहलू ही गर देखा
तुम सिर्फ़ आधा सीखोगे
सबसे हार रहे हो तुम
सबसे ज़्यादा सीखोगे
सबसे ऊँचा, होता है,
सबसे ठंडा, सीखोगे
सूरज के बेटे हो तुम
सब कुछ काला सीखोगे
सीखोगे जो ख़ुद पढ़कर
सबसे अच्छा सीखोगे
पहले प्यार का पहला ख़त
पुर्ज़ा पुर्ज़ा सीखोगे
हाकिम बनते ही ‘सज्जन’
सब कुछ खाना सीखोगे
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी
सबसे हार रहे हो तुम
सबसे ज़्यादा सीखोगे---वाह्ह्ह वाह
बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई सभी शेर बढ़िया हुए बधाई लीजिये
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय समर साहब। इस शे’र को सुधारने पर मैं विचार कर रहा हूँ। अभी दिमाग में कुछ ऐसा है।
इक पहलू ही गर देखा
तुम बस आधा सीखोगे
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रक्ताले जी
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय सौरभ जी, स्नेह बना रहे
जल्दी में क्या सीखोगे
सब आहिस्ता सीखोगे
एक पहलू ही गर देखा
तुम सिर्फ़ आधा सीखोगे....वाह ! वाह !
आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी सादर, बहुत ही खूब गजल कही है, हर शेर सीखने वाले को एक नयी चेतावनी देता दीख रहा है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.
सारे शेर तो कमाल हैं ही, आदरणीय धर्मेन्द्र जी, इस शेर ने बहुत ही अधिक प्रभावित किया -
सबसे ऊँचा, होता है,
सबसे ठंडा, सीखोगे
हार्दिक बधाइयाँ ग़ज़ल के होने पर.
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी, आपकी बात से एक और शे’र हो गया
खुद को पढ़ लोगे जिस दिन
सारी दुनिया सीखोगे
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुशील जी
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