For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है

२१२२   ११२२  ११२२  २२/ ११२

ज़िंदगी तेरी उदासी का कोई राज भी है

तेरी आँखों में छुपा ख्वाब कोई आज भी है 

 

पतझड़ों जैसा बिखरता है ये जीवन अपना 

कोपलो जैसे नए सुख का ये आगाज भी है

 

गुनगुना लीजे कोई गीत अगर हों तन्हा 

दिल की धड़कन भी है साँसों का हसीं साज भी है

 

वो खुदा अपने लिखे को ही बदलने के लिए

सबको देता है हुनर अलहदा अंदाज भी है

 

काम करना ही हमारा है इबादत रब की

इस इबादत में छिपा  ज़िंदगी का  राज भी है

 

कुछ कलम के यहाँ ऐसे भी पुजारी हैं हुए

सामने राजा ने जिनके दिया रख ताज भी है 

 

काम करता जो बुरे लोग हैं नफरत करते

काम गर अच्छे करे तब तो कहें नाज भी है   F-49

मौलिक व अप्रकाशित  

Views: 988

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 3, 2016 at 7:53pm

वाह आदरणीय बहुत ही खूबसूरत अंदाज 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 29, 2016 at 1:23pm

आदरणीय लक्ष्मण जी रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर धन्यवाद के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 29, 2016 at 1:21pm

आदरणीय रवि सर ..आप सबका मार्गदर्शन मिलने से अगले रचना में ये तो नहीं कहूँगा की गलती नहीं होगी लेकिन धीरे धीर गलतियों की ग़ज़ल ..ग़ज़ल में गलतियों तक जरूर अपना सफ़र तय करेगी ..पुराणी गलतियों पुनरावृत्ति न हो अगर सीखने वाले का अनुभव बढ़ता है तो ..नयी नयी गलतियों को पकड़ लेने का बिद्वत जनो का अनुभव भी उस समयावधि में और गहरा हो जाता है .आपका मार्गदर्शन मुझे यूं ही मिलता रहे इस कामना और सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 29, 2016 at 1:16pm

आदरणीय समर सर ..आपका मुझे हर ग़ज़ल पर बेशकीमती सलाह देते हैं इस अद्भुत मंच की सीखने सिखाने की इस परंपरा में आप जैसे बिद्वत जन सिखाने और हम जैसे सीखने की परंपरा का निर्वहन कर रहे है आदरणीय सर मैं उर्दू हिंदी काफिया बंदी के बिषय में ध्यान देने की कोशिस पूरे मन से करूंगा यद्दपि थोडा कठिन हो जाता है आपके मशविरे के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर प्रणाम के साथ 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 29, 2016 at 11:35am

पतझड़ों जैसा बिखरता है ये जीवन अपना 

कोपलो जैसे नए सुख का ये आगाज भी है

आ० भाई आशुतोष जी सूंदर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई l

Comment by Ravi Shukla on July 28, 2016 at 4:07pm

आदरणीय आश्‍ुातोष जी आपने हमारे कहे को मान दिया इसके लिये आभार ।अभी हम हिंदी के शब्‍द के अनुसार गजल कह रहे हे पर आदरणीय समर साहब का मश्‍विरा भी गौर करने लायक है उर्दू अल्‍फाज की जानकारी से गजल के कहन का हमारा दायरा भी बढ़ता है और उसमें नफासत भी आ जाती है । जितना हो सके उसके बारे में भी साथ साथ जानकारी लेते रहेंं । बाकी आपके प्रयास से आश्‍वस्ति हुई है । 

Comment by Samar kabeer on July 28, 2016 at 3:26pm
जनाब डॉ.आशुतोष मिश्रा जी आदाब,आज बहुत दिन बाद मंच पर हाज़िर हुआ हूँ,नेटवर्क कब चला जाए कुछ पता नहीं,जो समय मिला है उसे ग़नीमत जान रहा हूँ ।
ग़ज़ल आपकी अच्छी हुई है इसके लिये मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं । जनाब रवि शुक्ल जी के मशविरे बहुत उम्दा हैं उनपर आपने ध्यान भी दिया है ।

में अगर इस ग़ज़ल को हिंदी के हिसाब से देखूं तो ठीक है, लेकिन उर्दू के हिसाब से देखूंगा तो इसमें क़ाफ़िया बन्दी का दोष मिलता है,"राज़" "आग़ाज़" के साथ 'आज'और राज के क़ाफ़िये नहीं चलेंगे,आपकी जानकारी के लिये साझा किया है ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 28, 2016 at 1:51pm

आदरणीय मनन जी रचना पर आपकी प्रतिक्रीय के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर धन्यवाद के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 28, 2016 at 1:50pm

आदरणीया राजेश जी रचना पर आपके प्रोत्साहन के लिए ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय रवि सर के मार्गदर्शन के अनुरूप परिवर्तना करने की कोशिस की है  सादर धन्यवाद के साथ 

Comment by Manan Kumar singh on July 27, 2016 at 10:42pm
एक अच्छी गजल के लिए बधाई पेश है आदरणीय।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
9 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
19 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service